इंगलैंड में इस्लाम बहुत आख़िर मे पहुंचा है, वहां इस्लाम ले जाने में सबसे बड़ा हाथ हिन्दुस्तान के मुसलमानो का है। आधिकारिक तौर पर इंगलैंड में पहली मस्जिद 1889 में बनी; एक लीवरपूल में तो दूसरी वॉकिंग में! इन दोनो मस्जिद के बारे में कहा जाता है के ये इंगलैंड की पहली मस्जिद है।
विलियम हेनरी क्युलियाम उर्फ़ अबदुल्लाह क्युलियाम ने 1889 मे इंगलैंड के लीवरपूल में “मुस्लिम इंस्टिचूट” खोला, और वहां पढ़ने वाले बच्चो के लिए एक मस्जिद की स्थापना की, जिसमे हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी के अज़ीम रहनुमा 1915 में काबुल मे बनी आरज़ी आज़ाद हिन्द सरकार को प्राधानमंत्री मौलवी बरकतउल्लाह भोपाली ने अपने युरोप के क़याम के दौरान 1895 से 1899 तक अपनी सेवाएं दीं।
वहीं दूसरी ओर पंजाब युनिवर्सिटी के संस्थापक गोटलिब विल्हेम लेइटेनर उर्फ़ अब्दुल रशीद सय्याह ने 1881 में वॉकिंग टाउन में ओरिएण्टल इंस्टीट्यूट की बुनियाद डाली, और यहां पढ़ने वाले मुस्लिम छात्रों के लिए एक मस्जिद भोपाल की बेगम शाहजहां की मदद से 1889 में बनवाई!
विलियम हेनरी क्युलियाम उर्फ़ अबदुल्लाह क्युलियाम की बनाई हुई मस्जिद एक बनी बनाई जगह थी, जिसे मस्जिद का रूप दे दिया गया था। वहीं गोटलिब विल्हेम लेइटेनर उर्फ़ अब्दुल रशीद सय्याह की बनवाई हुई मस्जिद अाधिकारिक तौर पर एक मस्जिद थी। जिसे दूर से भी देख कर कोई मस्जिद कह सकता था। मस्जिद बनने से पहले 2 अगस्त 1889 को मस्जिद का नक़्शा ‘द बिल्डिंग न्यूज़ एैंड इंजिनियरिंग जर्नल’ में छपा था।
हुआ कुछ युं के हंगरी-ब्रिटिश मूल के ओरिएंटलिस्ट गोटलिब विल्हेम लेइटेनर जो के एक यहूदी थे ने कई मुस्लिम मुल्क घूमने के बाद ख़ुद का नाम बदल कर अब्दुल रशीद सय्याह कर लिया था। ये अरबी, टर्किश, फ़ारसी उर्दु जैसी पचास से अधिक ज़ुबान जानते थे। इन्हे 1861 में किंग्स कॉलेज लंदन में अरबी ज़ुबान और मुस्लिम लॉ का प्रोफ़ेसर बनाया गया। 1864 में गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर के प्रिंसपल बने। 1882 में पंजाब युनिवर्सिटी की बुनियाद में अहम रोल अदा किया। इसी दौरान 1871 से 1876 के बीच हिन्दुस्तान और मुसलमानो के इतिहास पर दो जिल्द में किताब उर्दु ज़ुबान मे मौलवी करीमउद्दीन की मदद से लिखा। 1886 में रिटायर हो कर वापस इंगलैंड पहुंचे और पर उससे पहले उन्होने 1881 में वॉकिंग टाउन में ओरिएण्टल इंस्टीट्यूट की बुनियाद डाली थी, जो पंजाब युनिवर्सिटी से इंड्राल्ड था। यहां पढ़ने वाले मुस्लिम छात्रों की इबादत के लिए एक मस्जिद की ज़रुरत थी; तब भोपाल की बेगम सुल्तान शाहजहां बेगम ने बड़ी संख्या में मस्जिद के लिए चंदा दिया। और इस तरह से 1889 में वॉकिंग टाउन, इंग्लैंड में शाहजहां मस्जिद के रूप में इंगलैंड को पहली मस्जिद मिली।
इस मस्जिद में गुंबद, मीनार, और एक हॉल है, मस्जिद को आर्किटेक्ट डब्लू आई मेमर्स द्वारा इंडो-सारासेनिक रिवाइवल स्टाइल में डिज़ाइन करते हुए बाथ एंड बारगेट के पत्थरो से बनाया गया था।
जब तक गोटलिब विल्हेम लेइटेनर उर्फ़ अब्दुल रशीद ज़िन्दा रहे, मस्जिद आबाद रही! छात्र से लेकर मुसाफ़िर तक यहां आने लगे। महरानी विक्टोरिया के ख़ास मुलाज़िम मुंशी अब्दुल करीम इस मस्जिद को इबादत के लिए अकसर इस्तेमाल करते थे; जब महरानी विसड़र क़िले में ठहरा करती थीं।
22 मार्च 1899 को गोटलिब विल्हेम लेइटेनर उर्फ़ अब्दुल रशीद का इंतक़ाल हो गया और ब्रुकवुड क़ब्रिस्तान में दफ़न कर दिया गया। उनके इंतक़ाल के बाद पहले तो ओरिएण्टल इंस्टीट्यूट बंद हुआ और फिर शाहजहां मस्जिद भी बंद हो गई। मस्जिद के बंद होने का सबसे बड़ा कारण छात्रों के बाहरी देशों का होना था; जो ओरिएण्टल इंस्टीट्यूट के बंद हो जाने के बाद वापस अपने मुल्क लौट गए थे।
गोटलिब विल्हेम लेइटेनर के इंतक़ाल के बाद 1912 तक ये मस्जिद बंद रही और उस समय वापस खुली जब एक भारतीय वकील ख़्वाजा कमालउद्दीन वॉकिंग पहुंचे और उन्होने लेइटेनर के पुत्र को कोर्ट में घसीटा जिसने मस्जिद की ज़मीन को बेचना चाहा। कोर्ट में केस गया और ये फ़ैसला आया के मस्जिद अब किसी की निजी संपत्ती नही है, ये उसी तरह धार्मिक संस्था है जैसा एक चर्च होता है! इसके बाद ख़्वाजा कमालउद्दीन वहां वॉकिंग मुस्लिम मिशन की स्थापना की! फ़रवरी 1913 को ख़्वाजा कमालउद्दीन ने पहली बार “इस्लामिक रिव्यू” नामक मासिक पत्रिका निकाला, जिसके पहले अंक में ही उन्होने “भारतीय मुसलमान” की बात की। ये पुरे इंगलैंड में बंटता था। वॉकिंग मुस्लिम मिशन के संबंध में आ कर बहुत से लोगों ने अपना धर्म त्याग कर इस्लाम क़बूल किया। 1924 में इंगलैंड में मुसलमानो की कुल अाबादी दस हजार थी जिनमें एक हज़ार से अधिक वो लोगो थे जिन्होने अपना धर्म बदल लिया था। 1960 तक शाहजहां मस्जिद इंगलैंड के मुसलमानो का मरकज़ बनी रही! पर 70 के दशक में पाकिस्तान से बड़ी तादाद में आ कर लोग लंदन में बसने लगे और वहां मस्जिद की बुनियाद डाली जिसके बाद शाहजहं मस्जिद एक आम मस्जिद बन कर रह गई। आम लोगों मे इसका महत्व भी घटने लगा। और इसका सबसे बड़ा कारण यह था के ये मस्जिद अहमदिया समुदाय कि निगरानी में थी; जिन्हे आम मुसलमान मुसलमान नही मानते हैं। बाद मे इस मस्जिद पर सुन्नी समुदाय का अधिकार हो गया।
इस मस्जिद से अब्दुल्लाह युसुफ़ अली, मुहम्मद मर्माड्यूक पिक्थहल्ल और लार्ड हेडली उर्फ़ शेख़ रहमतुल्लाह अल फ़ारूक़ के तालुक़ात रहे हैं, जिन्होने इंगलैंड में इस्लाम को स्थापित किया। पहले विश्व युद्ध के दौरान भारतीय मुस्लिम सिपाही इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ते देखे गए हैं! इसके इलावा बड़ी तादाद में भारतीय स्वातंत्रता सेनानी यहां आया करते थे, जिनमे मौलाना शौकत अली, मौलाना मुहम्मद अली जौहर, आग़ा ख़ान, सैयद अमीर अली और अल्लामा इक़बाल का नाम क़ाबिल ए ज़िक्र है।
21 मार्च 1920 को तीन लोगों का एक डेलिगेशन मौलाना मुहम्मद अली जौहर की क़यादत में शाहजहां मस्जिद पहुंचता है, उनके साथ लोग मौलाना सुलैमान नदवी और सैयद हुसैन थे। बड़ी तादाद में भरतीय और ब्रिटिश मूल के मुसलमान मस्जिद मे जमा होते हैं, साथ मे बहुत से ग़ैरमुस्लिम मर्द व औरत भी थे। मस्जिद में जगह कम पड़ जाती है, इस लिए जलसा बहर आहते में किया जाता है। जलसे की अध्यक्षता प्रोफ़ेसर एच एम लियॉन किया था। अप्रैल 1920 में भोपाल के पास मौजूद कुरवी रियासत के शहज़ादे मुहम्मद सरवर अली ख़ान यहां आये। मार्च 1924 में तुर्की के ऐम्बेसडर तो 8 मई 1937 को इरान के राजदूत मिर्ज़ा अली सोहेली यहां आये।
अक्तुबर 1925 में भोपाल की बेगम ने अपने इंगलैंड दौरे के दौरान इस मस्जिद में जा कर इबादत की थी। 30 जून 1935 को साऊदी अरब के शहज़ादे अमीर सऊद तो 19 फ़रवरी 1939 को साऊदी अरब के उस समय के विदेश मंत्री और बाद के बादशाह किंग फ़ैसल यहां तशरीफ़ लाये। भारतीय मुसलमानो का यहां आना जाना लगा रहा और 7 जून 1931 को निज़ाम हैदराबाद के शहज़ादे मोअज़्ज़म और आज़म इस मस्जिद में तशरीफ़ ले गए।