23 फ़रवरी 1881 को पंजाब के जालंधर ज़िले में एक छोटे से गाँव खटकरकलां के एक सिख घराने मे पैदा हुए सरदार अजीत सिंह एक ऐसी शख़्सियत का नाम है जिसने अपनी ज़िंदगी अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ लड़ने में गुज़ार दी ,अपने जिंदगी के ख़ुबसूरत और बेहतरीन पलों मे अपने वतन से दूर कभी ऐशिया के दुसरे मुल्कों में तो कभी यूरोप के मुल्कों में दर बदर भटकाता रहा..! हिन्दुस्तान के इस अज़ीम मुजाहिद ए आज़ादी ने अपने मुल्क को आज़ाद करवाने के ख़ातिर अपने ज़िन्दगी के 38 साल दुसरे मुल्क मे गुज़ार डाला।
इन्होने इबतदाई तालीम जालंधर मे हासिल की और फिर वकालत करने लगे पर ग़ुलाम मुल्क को आज़ाद करवाने की ख़ातिर पढ़ाई छोड़ “पगड़ी संभाल जट्टा” नाम के किसान अंदोलन से जुड़ गए और इस तहरीक को उसकी उंचाई तक पहुंचाया.. फिर उन्होने हिन्दुस्तान में ब्रितानी हुकुमत की खुल कर मुख़ालफ़त शुरु दी जिस वजह कर उन्हें ‘बाग़ी’ घोषित कर दिया गया था।
सन 1907 ई. में सारे पंजाब की पुलिस सरदार अजीत सिंह के पीछे लगी थी और मई 1907 ई. में लाला लाजपत राय जी के साथ ही इन्हें भी मुल्क बदर कर दिया गया था पर अवाम की दबाव के वजह कर इन दोनो को नवम्बर 1907 मे आज़ाद कर दिया गया।
वापस हिन्दुस्तान आकर फिर से वे तहरीक ए आज़ादी को सुफ़ी अम्बा प्रासाद के साथ मिल कर मज़बुत करने लगे, और इसमे इनका साथे दे रहे थे नौजवान इंकलाबी जिनमे से कुछ इस तरह हैं :- त्रीषीकेश लेठा, ज़िया उल हक़, ठाकुर दास धुरी वग़ैरा…
और 1909 मे जैसे ही उन्हे अंग्रेज़ों के ज़रिया गिरफ़्तार किए जाने की साज़िश के बारे मे ख़बर मिली तो सरदार ने अपना घर बार छोड़ दिया और मुल्क के आज़ादी की ख़ातिर दुनिया के दौरे पर निकल गए, उस वक़्त उनकी उम्र 28 साल थी। वोह मुसलमान के लिबास में पहले डलहौज़ी पहुंचे और फिर काबुल के रास्ते वे ईरान पहुंचे और ईरान में अंग्रेज़ों के खिलाफ़ चल रहे तहरीक से जुड़ गए। और अपने बाकमाल शख़सियत की वजह कर ईरान को ब्रिटिश हुकुमत के मुख़ालिफ़ों का गढ़ बना दिया पर 1910 में ब्रिटिश हुकुमत के दबाव में आ कर इरानी हुकुमत ने कारवाई करते हुए सभी गतिविधियों को बंद करा दिया, फिर सरदार अजीत सिंह वहां से वे युरोप गए और लगातार अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लोगों को एक करते रहे।
तुर्की, जर्मनी, ब्राज़ील, स्विट्जरलैंड, इटली, जापान जैसे मुल्कों में रहकर उन्होंने इंक़लाबीयों का साथ दिया, और साल 1918 मे अमेरिका मे गदर पार्टी के ज़रिया चलाई जा रही तहरीक में से जुड़े। फिर वापस युरोप आ गए…
इसी बीच 1923 में इकबाल शैदाई भी अफ़ग़ानिस्तान से निकल इटली पहुंचे, फिर मास्को फिर पेरिस, हर जगह वो हिंदुस्तान से अंग्रेज़ी हुकूमत को निकालने के लिए कोशिश कर रहे थे..!
http://localhost/codeenddesign/iqbal_shedai/
चुंके मुसोलिनी ब्रिटिश हुकूमत का दुशमन था और हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी का समर्थक था और यही वजह है के उसने मोहम्मद इक़बाल शैदाई और सरदार अजित सिंह के साथ सैकड़ो हिन्दुस्तानी इंक़लाबीयों को अपने मुल्क मे रहने की जगह दी थी।
और फिर मोहम्मद इक़बाल शैदाई के साथ मिल कर सरदार अजित सिंह ने रोम के नज़दीक मे आज़ाद हिन्दुस्तान को लिए एक तहरीक की बुनियाद डाली गई।
Iqbal started #RadioHimalaya programs on daily basis from Rome to broadcast almost daily over the Italian Radio Himalaya to India calling on the people to rebel against foreign rule. #SardarAjitSingh, a Sikh Revolutionary was Shedai’s Minister of Information and Broadcasting. pic.twitter.com/0hmx259jhb
— Muslims of India (@WeIndianMuslims) January 12, 2018
इन्होने इस तहरीक के लिए इक़बाल शैदाई को अपना नेता चुना और फिर Iqbal Shedai ने 1941 मे “आज़ाद हिंदुस्तान सरकार “ की स्थापना की जो 1944 तक चली इसे Benito Mussolini ने मान्यता दिया. Sardar Ajit Singh इस सरकार मे Information and Broadcasting के Minister की हैसियत रखते थे।
Azad Hind Government (in Exile) was established by #IqbalShedai in 1941 in #Rome.
Shedai was appointed as the President of this Government, which worked till 1944.#SardarAjitSingh, a Sikh Revolutionary was Shedai’s Minister of Information and Broadcasting.#AzaadiKiNishaniyan https://t.co/ePRjs1hW6Z
— Muslims of India (@WeIndianMuslims) August 15, 2018
सरदार अजीत सिंह ने इकबाल शैदाई के साथ मिल कर अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ तीन बड़े काम किये.. सबसे पहले उन्होंने “आज़ाद हिंदुस्तान सरकार “ की स्थापना की, रेडियो हिमालया के नाम से रेडियो स्टेशन चलाया जहाँ से वो हिंदुस्तान के जंगी सिपाहियों को सन्देश देते और इन सिपाहियों की मदद से “ आजाद हिंदुस्तान बटालियन “ की स्थापना की…!
इसी बीच नेतीजी बोस के साथ इक़बाल शैदाई की कई मिटिंग भी हुई.. पर कोई मिटिंग कामयाब न हो सकी, पर सरदार और शैदाई के ये तीनो काम ने नेताजी बोस के लिए रस्ते खोल दिए , नेता जी ने आज़ाद हिन्द सरकार की स्थापना की , आजाद हिन्द फ़ौज और रेडियो के माध्यम से अपने लोगों तक पहुंचाए…!
#RadioHimalaya की बुनियाद इक़बाल शैदाई और सरदार अजीत सिंह ने दुसरी जंग ए अज़ीम के दौरान (1941) रोम इटली मे डाला था. इसी से प्रेरित हो कर "आज़ाद हिन्द रेडियो" की बुनियाद सुभाष चंद्रा बोस ने डाला था.#IqbalShedai in the broadcasting center of Radio Himalaya, Rome.#WorldRadioDay pic.twitter.com/AUilCvq0Do
— Muslims of India (@WeIndianMuslims) February 13, 2018
सरदार अजीत सिंह ने ही नेताजी बोस को हिटलर और मुसोलिनी से मिलवाया था..
सरदार अजीत सिंह ने एक गुलाम मुल्क में जीने को पसंद नही किया और अपने वतन से दूर रह कर वतन को आज़ाद कराने की कोशिश में जुटे रहे , और जब वतन आज़ाद हुआ तो अपने आंखो के सामने अपने ख़्वाब को टुटते हुए देखा ….
38 साल तक मुल्क के बाहर रहने के बाद 1946 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के कहने पर वापस लौटे सरदार अजीत सिंह मुल्क के बटावारे के सदमे को बर्दाश्त ना कर सके … उन्हेने 14 अगस्त, 1947 के रात 12 बजे हिन्दुस्तान के आज़ाद होने की ख़बर सुनी और सुबह पांच बजे उनकी रुह परवाज़ कर गई।
On 15 August 1947 great Revolutionary #SardarAjitSingh uttered his last breath; On this date India got its Independence. His last words were, "Thank God, my mission is fulfilled."
He was Uncle of #BhagatSingh.#HappyIndependenceDay#IndependenceDayIndia#AzaadiKiNishaniyan pic.twitter.com/GCoGgsKpcC
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) August 15, 2018
उनके मुंह से निकला हुआ आख़री लफ़्ज़ था :- “Thank God, my mission is fulfilled.”
रिशते मे सरदार अजीत सिंह भगत सिंह के चाचा थे।
आज़ादी के बाद इक़बाल शेदायी भी अपने वतन लौट आये उस वक़्त तक उनका वतन पाकिस्तान हो चुका था, चुंके उनका आबाई माकान सियालकोट मे था, मगर वो वहां ज़्यादा दिन नही टिके अौर कुछ दिन बाद ही वापस इटली चले गये वहां उर्दू पढ़ाने का काम सर अंजाम दिया , इसी बीच मौलाना आज़ाद से उनकी मुलाकात रोम में हुई, मौलाना ने देल्ही आने की दावत दी ,मगर शैदाई लगभग 14 साल वहीँ रहे , फिर वापस लाहोर आ गये और 13 जनवरी 1974 की सुबह इस दुनिया को छोड़ गये..!
Md Umar Ashraf