सर मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन, बिहार का सबसे बड़ा नायक

पटना युनिवर्सिटी को वजुद मे लाने मे अपना अहम रोल अदा करने वाले सर मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन ने 1921 से 1933 के बीच बिहार के शिक्षा मंत्री रहते हुए पटना यूनिवर्सिटी के कई बिलडिंग और हॉस्टल का निर्मान करवाया, चाहे वो बी.एन कॉलेज की नई इमारत हो या फिर उसका तीन मंज़िला हास्टल, साईंस कॉलेज की इमारत हो या फिर उसका दो मंज़िला हॉस्टल, इक़बाल हास्टल भी उन्ही की देन है। रानी घाट के पास मौजुद पोस्ट ग्रेजुएट हॉस्टल भी उन्होने बनवाया था। उसके साथ ही पटना ट्रेनिंग कॉलेज की इमारत भी उन्ही की देन है।

इसके लिए उन्होंने बिहार के कई देसी राजा महराजा और नवाबो से निजी तौर पर मिल कर ज़मीन और पैसा डोनेशन के तौर पर लिया। चूँकि उस समय उड़ीसा भी उनके मंत्रालय में आता था इस लिए कटक के रावेनशॉ कॉलेज और उसके हॉस्टल की इमारत बनाने में उन्होंने ख़ासी दिलचस्पी ली। मुज़फ़्फ़रपुर के ग्रीयर भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज, भागलपुर के तेज नारायण कॉलेज की नई इमारत और हॉस्टल उन्होंने बनवाया। पटना के मदरसा शमसुल होदा की दो इमारत के साथ 1922 में मदरसा बोर्ड की स्थापना की। पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर के रहने के आठ क्वॉर्टर भी रानी घाट पर बनवाया।

वैसे सर मुहम्मद फ़ख़रूद्दीन का प्लान पटना यूनिवर्सिटी को एक आलीशान रिहाईशी यूनिवर्सिटी बनाने का था, इसलिए वो पटना शहर के बाहर फुलवारी शरीफ़ यूनिवर्सिटी को ले जाना चाहते थे। पर उसका विरोध हुआ। बहरहाल, सर मुहम्मद फ़ख़रूद्दीन रुके नही।

चुंके बंगाल से बँटवारे के बाद अधिकतर अंग्रेज़ और हिंदुस्तानी प्रोफ़ेसर बिहार से चले गए थे, जिसके बाद बहुत सारी जगह ख़ाली हो गई। तब उस जगह को भरने के लिए सर मुहम्मद फ़ख़रूद्दीन ने बिहार एजुकेशन सर्विस क्लास वन स्थापना कर उसके तहत पूरे मुल्क से बेहतरीन और नामवर टीचर को पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के लिए ले आए। डॉक्टर ज्ञान चंद को एकनॉमिक्स, प्रोफ़ेसर तारापुरवाला को इतिहास, प्रोफ़ेसर जमुना प्रसाद को साइकोलॉजी, प्रोफ़ेसर हिल को अंग्रेज़ी और प्रोफ़ेसर शिव पार्वती प्रसाद को फ़िज़िक्स के लिए पटना यूनिवर्सिटी से जोड़ा गया। इसके इलावा प्रोफ़ेसर नैयर लईक़ अहमद और प्रोफ़ेसर जादूनाथ सरकार जैसे क़ाबिल लोगों को भी रिक्रूट किया गया। पटना लॉ कॉलेज के लिए बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से एक बहुत ही क़ाबिल अंग्रेज़ प्रोफ़ेसर को ले आए।

उस ज़माने में अंग्रेज़ों ने ये रूल बना रखा था के कोई भी उम्मीदवार उस वक़्त तक क्लास वन में नही लिया जा सकता था, जब तक वो यूरोप या अमेरिका से कोई डिग्री लेकर नही आया हो। सर मुहम्मद फ़ख़रूद्दीन इसके ख़िलाफ़ थे, इसके काट के लिए उन्होंने एक तरकीब निकाली। उन्होंने एक स्टेट स्कॉलरशिप की स्कीम तैयार करवाई जिसके तहत बिहार के जो बच्चे बीए और एमए में अच्छा करते; उन्हें स्कॉलरशिप देकर ऑक्सफ़ोर्ड और कैम्ब्रिक में आगे की पढ़ाई के लिए भेजा जाता और उनके वापस लौटने पर पटना यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर का ओहदा दिया जाता था। जिसमें किशोरी प्रसाद सिन्हा, फ़ज़लुर रहमान और कलीमउद्दीन अहमद को अंग्रेज़ी के लिए, घनश्याम दास को हिस्ट्री, बालभद्रा प्रसाद और क़मरुददोजा को केमेस्ट्री के लिए, भैरवनाथ रहतोगी को एकनॉमिक्स के लिए इंगलैंड भेजा गया था। अफ़सोस की बात ये है की 1933 में सर मुहम्मद फ़ख़रूद्दीन के इंतक़ाल के साथ ये स्कॉलरशिप भी बंद हो गई। वैसे 1944 में हिस्ट्री के प्रोफ़ेसर केके दत्त और फ़ारसी के प्रोफ़ेसर इक़बाल हुसैन पहले दो उम्मीदवार हैं जिनके पास बाहर डिग्री नही थी, और ये पटना यूनिवर्सिटी में क्लास वन से प्रोफ़ेसर बने।

सर मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन की कोशिशों की वजह कर बिहार एंजिनीरिंग स्कूल को बिहार एंजिनीरिंग कॉलेज में बदला गया। मुम्बई से बोमन संजना को सिविल एंजिनीरिंग पढ़ाने के लिए ले आए। इसी के साथ बिहार में वेटनरी कॉलेज की भी स्थापना की। साईंस कॉलेज की स्थापना उनकी वजह कर हुई। कुल मिला कर पटना और बिहार में जो भी इदारे दिख रहे वो इन्ही की देंन है।

ध्यान रहे के 1912 मे मौलाना मज़हरुल हक़ द्वरा बिहार के लिए अलग यूनिवर्सिटी की मांग ने धीरे धीरे आंदोलन का रुप ले लिया था जिसके बाद मई 1913 में केंद्रिय सरकार ने कुछ लोगो की एक कमिटी Nathan Committee बनाई जिसकी सदारत R Nathan कर रहे थे। इस कमिटी मे सर मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन, राजा राजेंद्र नारयण भंज देव, मसुदन दास, शिव शंकर सहाय बहादुर, सैयद नुरुल होदा व डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा जैसे लोग थे।

16 जुलाई 1913 को इस कमिटी की पहली मिटिंग हुई और मार्च 1914 मे कमिटी ने अपनी रिपोर्ट सब्मिट की जिसमें बिहार और उड़ीसा के लिए एक अलग युनिवर्सिटी मांग को सही ठहराया गया। इसको लेकर 1916 में लखनऊ में हुए इतिहासिक कांग्रेस के अधिवेशन में चर्चा भी हुआ था। जिसके बाद पटना यूनिवर्सिटी एक्ट 23 सितम्बर 1917 को मौलाना मज़हरुल हक़ के जद्दोजेहद की वजह कर पास हुआ और इस तरह पटना विश्वविद्यालय की स्थापना 1 अक्टूबर 1917 को हुई। इस तरह से सर मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन का पटना यूनिवर्सिटी के स्थापना में अहम रोल रहा।

सर मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन का जन्म 1868 में पटना ज़िला के डुमरी में हुआ, वालिद का नाम मौलवी मुहम्मद अली था। शुरुआती तालीम घर पर हासिल की, उर्दू, फ़ारसी और अरबी सीखने के बाद पटना से 1891 में बीए पास किया और 1893 में बीएल की डिग्री हासिल कर पटना ज़िला कोर्ट में वकालत करने लगे। 1908 में पहली बिहार प्रांतीय सम्मेलन में अलग बिहार राज्य की प्रस्ताव पेश किया। 1910 में बंगाल की काउन्सिल के मेम्बर चुने गए। पटना में हाई कोर्ट बनने के बाद 1917 से 1920 तक सरकारी वकील की हैसियत से काम किया। 1921 में बिहार उड़ीसा लेजिस्लेटिव काउन्सिल के मेम्बर चुके और अपनी आख़री साँस तक इसके मेम्बर रहे। सर मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन का इंतक़ाल 1933 में हुआ। उन्हें फुलवारी शरीफ़ के बाग़ ए मुजीबिया में दफ़न कर दिया गया।

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.