मजलिस-ए-अहरार इस्लाम, एक राष्ट्रवादी मुस्लिम पार्टी जिसकी तारीफ़ सुभाष चंद्रा बोस ने की

 

पिछले दिनो गया के एक ख़ानक़ाह के नादिर मक़तूतात को देख रहा था, उसी दौरान एक सफ़ेद काग़ज़ दिखा, जिस पर मोहर लगा हुआ था। पढ़ने के बाद पता चला के ये मोहर बिहार मुस्लिम अहरार पार्टी का है। अहरार पार्टी ने 1937 में बिहार चुनाव में हिस्सा भी लिया और दरभंगा से मुहम्मद सलीम अहरार पार्टी के टिकट पर जीत भी गए थे।

वैसे 1929 में जंग ए आज़ादी के अज़ीम रहनुमा हज़रत मौलाना अताउल्लाह शाह बुख़ारी की सदारत में मजलिस अहरार इस्लाम की बुनियाद पंजाब में डाली गई थी, और इनका असल फ़ोकस पंजाब और कश्मीर था। मौलाना की पैदाइश पटना में हुई थी, पर वो पंजाब में जा बसे थे। चौधरी अफ़ज़ल हक़, मौलाना मज़हर अली मज़हर, मौलाना हबीबउर रहमान लुधियानवी जैसे लोग इसके रहनुमा थे। बहरहाल बिहार में इस तनज़ीम का पहला चैप्टर गया में खुला था, जहां फ़ज़ल रहमान और बिलाल अबगीलवी ने गया में मजलिस अहरार इस्लाम की बुनियाद डाली, इसका दफ़्तर शाह मुहम्मद उस्मानी साहब के घर पर था। वो और उनके भाई भी इस तनज़ीम से जुड़े थे। अहरार के मरकज़ से ताजउद्दीन साहब का भी पार्टी के काम के सिलसिले में गया आना हुआ था।

1932 के दौरान मजलिस अहरार इस्लाम ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ तहरीक छेड़ रखी थी, क़ाज़ी मुहम्मद हुसैन जो गया में इस तंज़ीम के सदर थे, ने तहरीक में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, जलसा किया और गिरफ़्तार हुवे। फिर उनके भाई क़ाज़ी अहमद हुसैन ने मोर्चा सम्भाला, और तहरीक चलती रही, अहरारी रज़ाकारों का एक जत्था गया से कश्मीर उस दौरान दौरे पर गया।

वहीं गया के ही रहने वाले शाह वजीहउद्दीन मिन्हाजी 1932 में बंगाल मजलिस अहरार इस्लाम के सेक्रेटरी बने, उन्होंने तहरीक में हिस्सा लिया, और 15 जून 1932 गिरफ़्तार कर लिए गए। जेल में काफ़ी ज़ुल्म सहा, काफ़ी बीमार रहने लगे, चार साल तक बिस्तर पर रहे, इलाज चलता रहा, बिस्तर ए मर्ग पर पड़े पड़े परेशान हो रहे शाह वजीहउद्दीन मिन्हाजी ने 1 फ़रवरी 1936 को अपनी डायरी में लिखते हैं ~ “मेरी तमन्ना ये है के मादर ए वतन की क़ुर्बान गाह पर मेरी जान क़ुर्बान हो जाए… बिस्तर ए र्मग पर पांव रगड़ रगड़ कर मरने के बजाय अल्लाह की राह में मैदान ए जंग में या फाँसी के तख़्त पर जान दुँ… आमीन, सुम्मा आमीन- फ़क़्त”

मजलिस अहरार इस्लाम एक ऐसी तनज़ीम थी, जिसने भारत के बँटवारे का भरपूर विरोध किया, नेताजी सुभाष चंद्रा बोस ने 31 अगस्त 1942 को बर्लिन से अपने रेडियो संदेश में इस तनज़ीम का नाम लेते हुवे कहा था के बहादुर मजलिस-ए-अहरार, एक भारतीय राष्ट्रवादी मुस्लिम पार्टी जिसने 1939 में ब्रिटेन के युद्ध प्रयासों के ख़िलाफ़ सबसे पहले सविनय अवज्ञा अभियान की शुरूआत की थी। मजलिस-ए-अहरार इस्लाम उस आज़ाद मुस्लिम कोनफ़्रेंस का अहम हिस्सा था, जिसने पूरे भारत के मुसलमानो को एक प्लाट्फ़ोर्म पर ला दिया था, जिसका पूरा मक़सद कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बँटवारे की सियासत से निकाल कर मुसलमान को उनकी सही नुमाइंदगी दिलवाये।

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.