‘मैं ऐसा गायक बनूँ, जिसमें समाज में बदलाव लाने की शक्ति हो।’ :- महान गायक भूपेन हज़ारिका


 

Shubhneet Kaushik

आज भूपेन हजारिका (1926-2011) की 92वीं जयंती है। असम के इस प्रसिद्ध गायक ने कभी चाहा था कि ‘मैं ऐसा गायक बनूँ, जिसमें समाज में बदलाव लाने की शक्ति हो।’ कहना न होगा कि वे सचमुच एक ऐसे ही गायक थे। उनका जीवन सुरों के पथ पर अनंत-यात्रा करने वाले यात्री का जीवन है। वैष्णव परिवार में जन्मे भूपेन हजारिका की संगीत में दिलचस्पी जहाँ वैष्णव भजनों से हुई, वहीं असम के आदिवासियों के संगीत ने उनमें संगीत साधना की ललक पैदा की।

अपनी धीर-गंभीर और कानों में गूँजने वाली आवाज़ का श्रेय वे अपनी माँ शांतिप्रिया को देते थे। उन्हें असमिया राष्ट्रवाद की राजनीतिक और सांस्कृतिक आकांक्षाओं की मुखर अभिव्यक्ति माना जाता रहा है। साथ ही, उनके गीतों ने वंचितों, गरीबों और हाशिये के समुदायों को भी स्वर दिया।

महज़ 13 साल की उम्र में भूपेन हजारिका ने असमिया फ़िल्म ‘इंद्रमालती’ के लिए गीत गाकर प्रसिद्धि बटोरी। इस फ़िल्म के निर्देशक असम के प्रसिद्ध कवि और फ़िल्म-निर्माता ज्योति प्रसाद अग्रवाल थे, जिन्होंने भूपेन हजारिका में राजनीतिक चेतना पैदा की और आज़ादी के आंदोलन से जोड़ा। भूपेन हजारिका महान लेखक लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ के लेखन से और विष्णु प्रसाद राभा के संगीत से भी बेहद प्रभावित रहे।

बीएचयू के राजनीति विज्ञान विभाग से बीए और एमए की पढ़ाई करने वाले भूपेन हजारिका ने कोलंबिया विवि से पीएचडी की। इसी दौरान वे नागरिक अधिकारों के पक्षधर प्रसिद्ध अश्वेत गायक पॉल रोबसन (1898-1976) के संपर्क में आए। पॉल रोबसन के विचारों ने युवा भूपेन हजारिका के जीवन पर अमिट छाप छोड़ी।

इतिहासकार अरूपज्योति सैकिया के अनुसार भूपेन हजारिका के गीतों को असम के आपस में मतभेद रखने वाले राजनीतिक समुदायों ने भी सर्वसम्मति से स्वीकार किया। इन समूहों द्वारा भूपेन हजारिका के गीतों को अपनी माँगों और संघर्षों की अभिव्यक्ति के रूप में देखा गया। हालाँकि उन्होंने अपने गीतों में विश्व-बंधुत्व पर भी ज़ोर दिया और वे असम के सांस्कृतिक-राजनीतिक जीवन में अहम भूमिका अदा करने वाली पत्रिका ‘आमार प्रतिनिधि’ से भी जुड़े रहे।

पचास के दशक में वे इप्टा से जुड़े, यह जुड़ाव उनके रचनाकर्म के राजनीतिक रुझान में स्पष्ट होता है। 1972 में अपने भाई जयंत हजारिका के साथ वे बर्लिन में आयोजित हुए ‘इंटरनैशनल फेस्टिवल ऑफ पॉलिटिकल सॉन्ग्स’ में भी शामिल हुए। उन्होंने अपने गीतों में तमाम राजनीतिक मुद्दों पर मसलन, असमिया राष्ट्रवाद, असम के आदिवासियों और चाय बागानों के मजदूरों के संघर्षों को अभिव्यक्ति दी। उनके गीतों में जहाँ एक ओर असम की धरती, उसके लोगों के रोज़मर्रा के जीवन और संघर्षों की गूंज मिलती है, वहीं उसमें भारत और विश्व से जुड़ने का भाव भी स्पष्ट है।

आरंभ में वामपंथी रुझान रखने वाले और प्रतिरोध व संघर्ष के गीतों के लिए चर्चित भूपेन हजारिका के राजनीतिक जीवन में विरोधाभास भी रहे। मसलन 2004 में उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार के रूप में गुवाहाटी से संसदीय चुनाव भी लड़ा। बतौर फ़िल्मकार भी भूपेन हजारिका ने असमिया भाषा में ‘प्रतिध्वनि’ और ‘शकुंतला’ जैसी फिल्में बनाईं, जिन्हें नैशनल अवार्ड मिला। उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया।