गंगू मेहतर विट्ठुर के शासक नाना साहब पेशवा की सेना में नगाड़ा बजाते थे। गंगू मेहतर को कई नामों से पुकारा जाता है। भंगी जाति के होने से गंगू मेहतर तो पहलवानी का शौक़ होने की वजह कर गंगू पहलवान के नाम से पुकारा जाता था।
सती चौरा गांव में इनका पहलवानी का अखाड़ा था, कुश्ती के दांव पेच एक मुस्लिम उस्ताद से सीखने के कारण गंगूदीन नाम से पुकारे जाने लगे और लोग इन्हें श्रद्धा प्रकट करने के लिए गंगू बाबा कहकर भी पुकारते थे।
Indian Mutiny Rebel Gungoo Mehter who was tried at Kanpur for killing many of the #SatiChaura survivors, including many women and children. He was convicted and hanged at Kanpur on 8 September 1859.#GungooMehter #SepoyMutiny #IndianRebellion #UprisingOf1857 pic.twitter.com/RbNTf5u21c
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) May 20, 2018
गंगू मेहतर के पुरखे जिले कानपुर के अकबरपुरा गांव के रहने वाले थे। उच्चवर्णों की बेगार, शोषण और अमानवीय व्यवहार से दुखी होकर इनके पुरखे कानपुर शहर के चुन्नी गंज इलाके में आकर रहने लगे थे।
1857 की लडा़ई में इन्होने नाना साहब की तरफ़ से लड़ते हुए अपने शागिर्दों की मदद से सैंकड़ो अंग्रेज़ों को मौत के घाट उतारा था। और इस क़त्ल ए आम से अंग्रेज़ी सरकार बहुत सहम सी गई थी। जिसके बाद अंग्रेज़ों ने गंगू मेहतर जी को गिरफ़्तार करने का आदेश दे दिया। गंगू मेहतर अंग्रेज़ों से घोड़े पर सवार होकर वीरता से लड़ते रहे। अंत में गिरफ़्तार कर लिए गए। जब वह पकड़े गए तो अंग्रेज़ों ने उन्हे घोड़े में बाँधकर पूरे शहर में घुमाया और उन्हें हथकड़ियाँ और पैरों में बेड़ियाँ पहनाकर जेल की काल कोठरी में रख दिया और तरह तरह के ज़ुल्म किये।
गंगू मेहतर पर इलज़ाम था के इन्होने कई महिलाओं और बच्चों का क़त्ल किया था; पर ये बात प्रोपेगंडा का हिस्सा भी थी, क्युं के अंग्रेज़ों ने उस समय मिडीया का भरपूर उपयोग प्रोपेगंडा के लिए किया था! बहरहाल गंगू मेहतर को फांसी की सज़ा सुनाई जाती है। उसके बाद कानपुर में इन्हे बीच चौराहा पर 8 सितम्बर 1859 को फाँसी के फंदे पर लटका दिया जाता है। लेकिन दुर्भाग्यवश भारत के इतिहास में इनका नामो निशान नही है। यह नाम जातिवाद के कारण इतिहास के पन्नों में कहीं सिमट सा गया है।
शहीद गंगू मेहतर अपनी अंतिम सांस तक अंग्रेजों को ललकारते रहे : “भारत की माटी में हमारे पूर्वजों का ख़ून व क़ुर्बानी कि गंध है, एक दिन यह मुल्क आज़ाद होगा।”
एैसा कहकर उन्होंने आने वाली पीढ़ियों को क्रान्ति का संदेश दिया और देश के लिए शहीद हो गए। कानपुर के चुन्नी गंज में इनकी प्रतिमा लगाई गई है। और यह तस्वीर कानपुर के सिविल सर्जन जॉन निकोलस(1818-1889) ने गंगू मेहतर(1859) को फांसी दिये जाने से पहले लिया था।