1912 से पहले बिहार बंगाल का हिस्सा था, अंग्रेज़ न सिर्फ़ बिहार के निवासी को परेशान करते थे, बल्कि अपनी फूंट डालो राज करो नीति के तहत उन्हें बंगालियों को लड़ाने का भी काम करते थे। इसी कारण उन्होंने बिहार के इलाक़े में कोई भी सरकारी मेडिकल कॉलेज और एंजिनीरिंग कॉलेज नही खोला। किसी भी बिहारी को कौंसिल का मेम्बर नही बनाया, हाई कोर्ट में जज नही बनाया। तब बिहार के लोगों ने इसके विरुद्ध आवाज़ उठानी शुरू की और और इसमें जिस शख़्स का पहला नाम आता है, वो हैं जस्टिस सैयद मुहम्मद शरफ़ुद्दीन, जो किसी बड़े पद पर पहुँचने वाले पहले बिहारी थे। अलग बिहार राज्य का आंदोलन हिंदू मुस्लिम एकता का एक बेहतरीन नमूना है।
सैयद मुहम्मद शरफ़ुद्दीन (Justice Syed Sharfuddin) का जन्म 1856 को हुआ था। वालिद का नाम सैयद फ़रज़ंद अली था, जो पटना ज़िला के नेवरा से ताल्लुक़ रखते थे, और छपरा कोर्ट में प्रैक्टिस किया करते थे।
पहले पटना, फिर सेंट ज़ेवियर कॉलेज कोलकाता से पढ़ाई मुकम्मल करने के बाद आप इंग्लैंड गए और वहाँ से 1880 में बैरिस्टर की पढ़ाई मुकम्मल की। आप नूरूल होदा और एहसानउद्दीन अहमद के साथ बिहार के पहले तीन लोग थे, जिन्होंने इंग्लैंड जा कर पढ़ाई की।
हिंदुस्तान लौट कर आपने पहले छपरा, फिर पटना और उसके बाद कोलकाता में वकालत करने लगे। देखते ही देखते सैयद मुहम्मद शरफ़ुद्दीन का नाम बंगाल के बड़े वकील में गिना जाने लगा।
Sir Fakhruddin (1868-1933): An Educational Visionary of Bihar.
वकालत के साथ आप सियासत में हिस्सा भी लेने लगे थे, आप कांग्रेस के स्थापना के समय से ही उससे जुड़े रहे, और आपने 1886 में कोलकाता में हुवे कांग्रेस के दूसरे सालाना इजलास में हिस्सा लिया। इसके लिए आपने बिहार के अलग अलग हिस्सों का दौरा भी किया। इसी सिलसिले में आरा के अंदर एक मीटिंग की अध्यक्षता भी की।
सैयद मुहम्मद शरफ़ुद्दीन ने 1888 में इलाहबाद में हुवे कांग्रेस के सालाना इजलास में हिस्सा लेने जा रहे बिहार के प्रतिनिधियों की नुमाइंदगी की थी। वहाँ अपनी तक़रीर में उन्होंने मुस्लिमों से कांग्रेस से हमदर्दी रखने की अपील की थी। उस सेशन 200 से अधिक मुस्लिमों ने हिस्सा लिया था, जिसमें 35 बिहार से थे।
आप 1906 में लॉर्ड मिण्टो से मिलने शिमला गए मुस्लिम प्रतिनिधि मंडल के प्रमुख सदस्य थे। 27 दिसंबर 1906 को आपने All India Mohammedan Educational Conference की अध्यक्षता की, और इसी कोनफ़्रेंस के नतीजे में 30 दिसंबर 1906 को मुस्लिम लीग वजूद में आई।
Syed Abdul Aziz in the Public Life of Patna, From 1885 to 1948
इसका मतलब ये हुआ के सैयद मुहम्मद शरफ़ुद्दीन शुरुआती दिनो से ही कांग्रेस और मुस्लिम लीग से जुड़े रहे। वैसे एक और मज़ेदार चीज़ ये है की बिहार प्रांतीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग की स्थापना 1908 में आपकी सरपरस्ती में हुई।
आप पटना ज़िला बोर्ड के उपाध्यक्ष तीन बार चुने गए। साथ ही आप कई साल तक पटना मुंसिपेलटी में मुंसिपल कमिश्नर रहे और साथ ही अपने अलग बिहार राज्य की स्थापना के लिए चल रहे आंदोलन की अगुआई भी करते रहे। आपने कई मौक़े पर अलग बिहार राज्य की माँग की।
सैयद मुहम्मद शरफ़ुद्दीन (Justice Syed Sharfuddin) 1907 में कलकत्ता हाई कोर्ट के जज बने और इस पद पर पहुँचने वाले आप पहले बिहारी थे। मार्च 1916 तक इस पद पर तब तक बने रहे, जब तक पटना में हाई कोर्ट की स्थापना नही हो गई। 1916 से 1917 तक पटना हाई कोर्ट के जज रहे। सैयद मुहम्मद शरफ़ुद्दीन पटना हाई कोर्ट के जज बनने वाले पहले भारतीय थे।
पटना में क़याम के दौरान देवबंद के पैटर्न पर सैयद मुहम्मद शरफ़ुद्दीन ने बांकीपुर में दार-उल-उलूम नाम से एक मदरसा भी क़ायम किया था। पटना हाई कोर्ट से रिटायर होने के बाद दिसंबर 1919 में सैयद मुहम्मद शरफ़ुद्दीन को बिहार और उड़ीसा प्रांत के गवर्नर के Executive Council का सदस्य भी बनाया गया। आपका इंतक़ाल 1921 में 65 साल की उम्र में हुआ।