रामपुर रज़ा लाइब्रेरी के पहले डायरेक्टर, मौलाना इम्तियाज़ अली खां अरशी

 

साजिदा शेरवानी

रामपुर रज़ा लाइब्रेरी के पहले डायरेक्टर मौलाना अरशी साहब के व्यक्तित्व की पहचान कराने की आवश्यकता नहीं। वह और रामपुर रज़ा लाइब्रेरी एक-दूसरे से इस प्रकार जुड़े हैं कि दोनों को अलग अलग नहीं किया जा सकता। वह 8 दिसंबर 1904 ई० को रामपुर के ऐसे परिवार में पैदा हुए जिसे विद्वानों का परिवार कहा जा सकता है। उनके पिता डॉ० मुख़्तार अली खां रामपुर में वेटरनरी डॉक्टर के पद पर आसीन रहे। अरशी साहब के दादा मौलवी अकबर अली खां और चचा मौलवी जाफ़र अली खां दोनों जाने माने विद्वान और मुहद्दिस थे। मौलवी जाफ़र अली खां ने मदरसा आलिया रामपुर में मुहद्दिस के पद पर अपनी सेवाएं प्रदान कीं।

उनकी प्राथमिक शिक्षा मोहल्ला पक्का बाग़ जहाँ उनके परिवार की रिहाईश थी, के एक मकतब में हुई। जहाँ उन्होंने क़ुरआन और उर्दू की शिक्षा प्राप्त की। फिर करीब के ही प्राइमरी स्कूल में उर्दू और फ़ारसी पढ़ी। उनके पिता उनको दादा और चचा की तरह उनको भी विद्वान बनाना चाहते थे। चुनाचें अरबी शिक्षा के लिए देश के जाने-माने फिलॉसफर और विद्वान मौलाना अब्दुल हक़ खै़राबादी के विशेष शिष्य हकीम अब्दुर्रशीद खां रामपुरी को सौंप दिया गया। अरशी साहब के हकीम साहब के पास कुछ समय शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्हें मोहल्ला घेर मर्दान खां स्थित प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान मतलऊल उलूम में स्वयं उनकी इच्छा के अनुसार दाख़िल करा दिया गया। इस मदरसे को कई बड़े विद्वानों की शिक्षण सेवाएं प्राप्त थीं, उनमें एक नाम मौलाना सय्यद अहमद साहब जा भी था। मौलाना इम्तियाज़ अली खां को अरशी साहब बनाने में मौलाना सय्यद अहमद साहब का बड़ा योगदान था जिन्होंने उनमें शिक्षा के प्रति लगन और ज़ौक़ पैदा करने का काम किया। अरशी साहब ने उन की देखरेख में कई वर्ष बिताए और शिक्षा प्राप्त की। इसी बीच पंजाब यूनिवर्सिटी लाहौर से मौलवी आलिम की परीक्षा पास की।

सन् 1923 ई० में मदरसा आलिया के फ़ारसी प्रो० शादाँ बिलग्रामी जब लाहौर के ओरिएण्टल कॉलेज में फ़ारसी के शिक्षक के रूप में गये तो अरशी साहब भी उनके साथ लाहौर चले गए और वहाँ से मौलवी फ़ाज़िल की परीक्षा उत्तीर्ण की, जहाँ उन्होंने मशहूर विद्वान श्री अब्दुल अज़ीज़ मैमनी, श्री सय्यद तलहा और मौलाना नज़्मुद्दीन से विशेष रूप से शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात लाहौर से रामपुर आ गये और मदरसा आलिया (ओरिएंटल कॉलेज) के सबसे बड़ी कक्षा (अव्वल) में प्रवेश लिया और मौलाना फ़ज़ले हक़ रामपुरी से शिक्षा ग्रहण की लेकिन वार्षिक परीक्षा में सम्मिलित न हो सके क्योंकि पंजाब यूनिवर्सिटी के मुन्शी फ़ाज़िल और अंग्रेजी में मैट्रिक करने के लिये लाहौर जाना पड़ा। यह सन् 1927 ई० की बात है जिसके बाद ही उनका शिक्षा काल समाप्त हो गया और अब उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए अथक प्रयत्न करना पड़ा। सबसे पहले उन्होंने मशहूर शिक्षण संस्थान नदवातुल उलमा की सेवा की, परंतु उनका दिल इस कार्य से जल्द ही ऊब गया और उन्होंने एक जर्मन कंपनी ‘बूफ़ान’ जो टाइप राइटर और सिलाई मशीन बनाती थी कि एजेंसी प्राप्त कर ली, रामपुर और लखनऊ में उसके कार्यालय स्थापित किये लेकिन कारोबार करना उनके मिज़ाज से मेल न खाता था चुनाचें काफी नुकसान उठाने के बाद उन्हें यह काम भी बंद करना पड़ा।

सन् 1932 ई० में रामपुर की रियासत की सरकार ने उन्हें सरकारी किताबख़ाने (रज़ा लाइब्रेरी) का ‘नाज़िम’ नियुक्त किया, जहाँ उन्होंने पहले ‘ नाज़िम’, फिर ‘ लाइब्रेरियन’ और बाद में डायरेक्टर के पद पर अपनी अंतिम सांस तक सेवा की। यह पद और नौकरी उनके ज़ौक़ के अनुरूप थी और यहाँ पर कार्य करते हुए ही वह “अरशी साहब” के रूप में संसार के सामने आये और ख्याति प्राप्त की।

अरशी साहब की साहित्यिक सेवाओं का वर्णन करने के लिए एक पूरी किताब भी काफ़ी नहीं, उन्होंने उर्दू, फ़ारसी और अरबी भाषा में अपनी विद्वता का जो स्टैंडर्ड कायम किया उस तक पहुँचना अनुकरणीय तो हो सकता है परंतु अत्यंत कठिन।

यहाँ उनके कार्यों की एक संक्षिप्त सूची इस प्रकार है–

1- एहवाल ख़ुदनविश्त – तीन पृष्ठों पर फ़ारसी में अरशी साहब ने अपने जीवन के बारे में बताया है जो उनका अपना हस्तलिखित है और लाइब्रेरी में सुरक्षित है।
2- शेर हाये क़दीम – यह भी फ़ारसी भाषा में 3 पृष्ठों पर आधारित है और 1983 ई० में तेहरान (ईरान) से प्रकाशित हो चुकी है।

उक्त फारस भाषा के अतिरिक्त उर्दू में उनकी निम्नलिखित प्रकाशित पुस्तकें है जिनमें से कुछ उनकी अपनी लिखित हैं, कुछ संपादित हैं तथा कुछ पुरानी पुस्तकों पर उनकी महत्वपूर्ण टिप्पणियां।

3- दुस्तूर उल फ़साहत
4- फरहंग ग़ालिब
5- वक़ाये आलम शाही
6- तारीख़े मोहम्मदी
7- तारीख़े अकबरी
8- तारीख़े बाबरी
9- नफ़ाईस उल मआसिर
10- सब्द बानो दो दर

इनके अतिरिक्त रज़ा लाइब्रेरी के डायरेक्टर के रूप में उनका अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य लाइब्रेरी की पांडुलिपियों का विस्तृत कैटलॉग तैयार करना था। अरबी पांडुलिपियों के कैटलॉग के छह संकलन उनके जीवन काल में लाइब्रेरी से प्रकाशित हो चुके हैं जब कि सातवां संकलन प्रेस को जाने के लिए तैयार था कि उनकी मृत्यु हो गई। मौलाना अरशी साहब ने उक्त अरबी कैटलॉगों के अतिरिक्त उर्दू पांडुलिपियों का संकलन भी प्रकाशित किया। फ़ारसी भाषा की पांडुलिपियों की सूची भी वह अपने जीवन में तैयार कर चुके थे परंतु उनके जीवन के पश्चात् ही वह सूचियाँ प्रकाशित हो सकीं।

अर्शी साहब के कारनामों में उक्त कार्यों के अलावा उनके हज़ारों पृष्ठों पर फैले वह शोध लेख हैं जो देश-विदेश के पत्र, पत्रिकाओं, संकलनों में प्रकाशित हुए।

अर्शी साहब का नाम एक कवि के रूप में भी हमेशा जीवित रहेगा। उनके उर्दू काव्य का एक संकलन “इन्तेख़ाबे अरशी” सन् 2004 ई० में उनकी जन्म शताब्दी पर प्रकाशित हो चुका है। फ़ारसी शायरी कई ईरान से प्रकाशित पत्रिकाओं में छप चुकी है और काफ़ी पसन्द भी की गयी है।

अर्शी साहब की ख्याति एक विद्वान के रूप में भारत की सीमाओं से निकलकर विश्व के कोने-कोने में पहुँची। वह प्रसिद्ध कवि ग़ालिब के एक ऐसे माहिर के रूप में माने जाते हैं जिसकी दूसरी मिसाल मिलना नामुमकिन है।

अरशी साहब अपने जीवन के अन्तिम दिन 25 फरवरी सन् 1981 तक रामपुर रज़ा लाइब्रेरी के डायरेक्टर के रूप में कार्यरत रहे और मृत्यु उपरान्त उन्हें लाइब्रेरी (हामिद मन्ज़िल) के पश्चिम में दफ़न किया गया।

उनकी कई प्रकाशित पुस्तकें जो समय के साथ-साथ दुर्लभ हो रही थीं। लाइब्रेरी के पूर्व डायरेक्टर प्रोफ़ेसर सय्यद हसन अब्बास ने लाइब्रेरी से दोबारा प्रकाशित की हैं।

रामपुर रज़ा लाइब्रेरी बोर्ड ने अरशी साहब की लाइब्रेरी के संबंध में और दूसरी साहित्यिक सेवाओं को देखते हुए 2018 में प्रो० हसन अब्बास साहब, डायरेक्टर लाइब्रेरी की तजवीज़ पर यह तय किया था कि प्रत्येक वर्ष उनकी याद में विस्तार व्याख्यान आयोजित किये जायें। इस संबंध में 2018, 2019, 2020 और 2021 में विस्तार व्याख्यान आयोजित भी हो चुके हैं।

साजिदा शेरवानी रामपुर रज़ा लाइब्रेरी की फ़ारसी कैटलॉगर हैं।