पटौदी: जिसने टीम इंडिया को क्रिकेट में जीतना सिखाया

16 मार्च 1910 को पैदा हुए भोपाल रियासत के आख़री नवाब हमीदुल्लाह ख़ान के दमाद इफ़्तिख़ार अली हुसैन सिद्दिकी, 1917 से 1952 तक पटौदी (Pataudi) रियासत के आठवें नवाब रहे। इफ़्तिख़ार अली क्रिकेटर भी रहे हैं। वे पहले इंग्लैंड टीम की तरफ से खेले और बाद में भारतीय टीम के कप्तान बनें। गौर करने वाली बात यह है कि इंग्लैंड टीम की ओर से खेलते हुए भारत के इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी ने भी अपने डेब्यू मैच में शतक जमाया था. पटौदी ने इंग्लैंड की ओर से छह टेस्ट मैच खेले, लेकिन उन्होंने एक मात्र शतक डेब्यू मैच में ही 102 रन जड़ा था. फ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी ने भी भारत के लिए छह टेस्ट के साथ-साथ 127 प्रथम श्रेणी मैच खेले थे।

41 साल की उम्र मे पटौदी सीनियर यानी पूर्व भारतीय कप्तान इफ्त़िख़ार अली ख़ान पटौदी (M. A. K. Pataudi) की 5 जनवरी 1952 को दिल्ली में पोलो खेलते हुए दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। ये भी इततेफ़ाक है 5 जनवरी 1952 को इफ्त़िख़ार अली ख़ान पटौदी के बेटे नवाब मंसुर अली ख़ान पटौदी (Junior Pataudi) अपना 11वां जन्मदिन मना रहे थे, इसलिए जहाँ 5 जनवरी को जूनियर पटौदी के जन्मदिन के साथ-साथ उनके पिता पटौदी सीनियर की पुण्यतिथि भी है। जिसके बारे में कहा जा सकता है :- ख़ुशी के साथ दुनिया में हज़ारो ग़म भी होते हैं, जहां बजती है शहनाई वहां मातम भी होते हैं

पिता इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी के इंतक़ाल के बाद जूनियर पटौदी को सभी मानो भूल से गये। चार साल बाद ही अखबारों में उनका नाम छपा जब विनचेस्टर की तरफ से खेलते हुए उन्होंने अपनी बल्लेबाजी से सभी को प्रभावित किया। अपने पिता के निधन के कुछ दिन बाद ही मंसुर अली ख़ान पटौदी इंग्लैंड आ गए थे। मंसूर अली ख़ान की शिक्षा अलीगढ़ के मिंटो सर्कल में हुई। उनकी आगे की शिक्षा देहरादून (उत्तराखंड) के वेल्हैम बॉयज स्कूल में हुई। उन्होंने हर्टफोर्डशायर के लॉकर्स पार्क प्रेप स्कूल और विंचेस्टर स्कूल में भी अध्ययन किया। इसके इलावा उन्होंने अरेबिक और फ्रेंच ऑक्सफोर्ड के बैलिओल कॉलेज में पढ़ी।


Nationalism & Sports : Apartheid in South African Cricket  Quota for Coloured


इफ़्तिख़ार की मौत के बाद पटौदी रियासत (Pataudi Estate)  के 9वें नवाब मंसूर अली ख़ान 1952 में बने। पटौदी स्टेट का भारत सरकार में 1947 में ही मिल चुका था, परंतु उनका ‘नवाब’ टाइटल 1971 में खत्म किया गया। 1971 में भारतीय संविधान में संशोधन के बाद यह स्टेट भारत सरकार में मिला लिया गया और उनके टाइटल ‘नवाब’ का भी अंत हो गया। वे भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान भी चुने गए। नवाब पटौदी को भारत के सबसे बेहतरीन कप्तान के तौर पर जाना जाता है।

मंसूर अली खान या पटौदी जूनियर (Nawab Mohammad Mansoor Ali Khan Pataudi) सीधे हाथ के बल्लेबाज और सीधे हाथ के गेंदबाज थे। विंचेस्टर में स्कूल के छात्र खान ने अपने बल्लेबाजी के जौहर दिखाना शुरू कर दिए थे। वे स्कूल की क्रिकेट टीम के कप्तान थे। उन्होंने पब्लिक्स स्कूल रैकेट्स चैंपियनशिप भी जीती। 16 साल की उम्र में खान ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में सुसेक्स के लिए डेब्यू किया। ऑक्सफोर्ड के लिए खेलने वाले मंसूर अली खान पटौदी पहले भारतीय क्रिकेटर थे। 1 जुलाई 1961 को होव में एक कार एक्सीडेंट में एक कांच का टुकड़ा उनकी आंख में लग गया और उनकी दाईं आंख हमेशा के लिए खराब हो गई। इस एक्सीडेंट के बाद उनके क्रिकेट करियर पर हमेशा के लिए खत्म होने का खतरा मंडरा रहा था, क्योंकि उन्हें दो इमेज दिखाई देने लगी थीं, परंतु पटौदी जल्दी ही नेट प्रैक्टिस पर लौटे और एक आंख के साथ ही बेहतरीन खेलने लगे।

आंख खराब होने के वजह से पटौदी को एक साल की छुट्टी लेकर भारत आना पड़ा था. उस वक्त वह ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र थे. भारत में पहुंचे के बाद पटौदी का यही कोशिश थी कि वह ज्यादा से ज्यादा क्रिकेट खेलें. फिर प्रेजिडेंट टीम की कप्तानी करने के लिए पटौदी के पास प्रस्ताव आया. पटौदी इस चांस को खोना नहीं चाहते थे. एमसीसी के खिलाफ इस मैच में पटौदी अपनी दाहिनी आंख में लेंस लगाकर बल्लेबाजी करने आए थे, लेकिन लेंस की वजह से पटौदी को ऐसा लग रहा था जैसे दो गेंद उनकी तरफ आ रही हों. फिर भी पटौदी ने संभलकर खेलते हुए चायकाल तक 35 रन बना लिए थे और चायकाल के बाद जब वह बल्लेबाजी करने आए तो उन्होंने लेंस निकाल दिए और दाहिनी आंख बंद कर बल्लेबाजी की. उस मैच में पटौदी ने अपने टीम के लिए सबसे ज्यादा 70 रन बनाए थे. दुर्घटना के बाद यह पटौदी का पहला महत्पूर्ण मैच था।


सलीम दुर्रानी; वी वांट सिक्स


आंख में खराबी आने के 6 महीने से भी कम समय में पटौदी ने अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की। फिर पटौदी धीरे-धीरे अच्छा खेलने लगे और प्रथम-श्रेणी मैचों में उनके प्रदर्शन को देखते हुए दिसंबर 1961 में इंग्लैंड के खिलाफ कानपुर में खेले जाने वाले दूसरे टेस्ट के लिए पटौदी का चयन हुआ. चोट की वजह से नवाब पटौदी इस मैच खेल नहीं पाए थे, लेकिन 13 दिसंबर 1961 को दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ खेले गए तीसरे टेस्ट मैच में पटौदी को खेलने का मौक़ा मिला. अपने इस पहले टेस्ट मैच में पटौदी सिर्फ 13 रन बना पाए थे. 30 दिसंबर को इंग्लैंड के खिलाफ खेले गए चौथे टेस्ट मैच में बल्लेबाजी करते हुए नवाब पटौदी ने पहली पारी में 64 और दूसरी पारी में 32 रन बनाए थे और भारत ने इस मैच को 187 रन से जीता था. दोनों टीमों के बीच सीरीज का आखिरी टेस्ट मैच मद्रास में खेला गया था. पांच मैच की सीरीज में भारत 1-0 से आगे था और इंग्लैंड के खिलाफ भारत के पास अपनी पहली टेस्ट सीरीज जीतने का बहुत बड़ा मौक़ा था. इंग्लैंड के खिलाफ इस मैच में पटौदी ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए पहली पारी में शतक ठोका था. भारत ने इस मैच को 128 रन से जीत लिया था. इस तरह 30 साल के बाद इंग्लैंड के खिलाफ पहली टेस्ट सीरीज जीतने का गौरव हासिल किया था। वे अपनी दाईं आंख कैप के नीचे छुपाकर खेलते थे। मद्रास (चेन्नई) में अपने तीसरे ही टेस्ट में पटौदी ने 103 रन बनाए। उनके इन रनों की बदौलत भारत इंग्लैंड के खिलाफ अपनी पहली सीरीज जीतने में सफल हुआ।

1962 में पटौदी (Mansoor Ali Khan Pataudi) को वाइस कैप्टन वेस्टइंडीज टूर के लिए बनाया गया। मार्च 1962 में मंसूर अली खां पटौदी भारतीय टीम के कप्तान नियुक्त किए गए। 21 साल और 77 दिन की उम्र में वे कप्तान बनाए गए। बहुत ही अप्रिय हालात में उन्हें ये ज़िम्मेदारी दी गई. 1 मार्च, 1962 को बारबडोस के साथ मैच में उस समय दुनिया के सबसे तेज़ गेंजबाज़ चार्ली ग्रिफ़िथ की गेंद भारतीय कप्तान नारी कॉन्ट्रैक्टर के सिर में लगी और वे वहीं धराशायी हो गए. चोट इतनी ज़बरदस्त थी कि कॉन्ट्रैक्टर के नाक और कान से ख़ून निकलने लगा. टीम के मैनेजर ग़ुलाम अहमद ने उपकप्तान पटौदी को सूचित किया कि अगले टेस्ट में वे भारतीय टीम की कप्तानी करेंगे. इस तरह पटौदी युग की शुरुआत हुई जिसने भारतीय क्रिकेट को नई परिभाषा दी. कई वर्षों तक दुनिया के सबसे कम उम्र के कप्तान का रिकॉर्ड उनके नाम रहा जिसे बाद में ततेन्दा तैबु ने मई 2004 में तोड़ा। 2015 के नंवबर तक वे भारत के सबसे कम उम्र के कप्तान और दुनिया के दूसरे सबसे कम उम्र के कप्तान रहे।


सैयद मुहम्मद हादी: भारत के इतिहास का सबसे महान खिलाड़ी जिसने 


भारत इस पांच मैचों की टेस्ट सीरीज को 5-0 से हार गया था. इसके बाद पटौदी रिटायर होने तक भारत के कप्तान रहे. पटौदी ने भारत की तरफ से 46 मैच खेलते हुए करीब 35 की औसत से 2793 रन बनाए जिसमें छह शतक 16 अर्धशतक शामिल हैं. 8 फरवरी 1964 को पटौदी ने इंग्लैंड के खिलाफ शानदार 203 रन बनाए थे, जो उनके क्रिकेट करियर का सर्वाधिक व्यक्तिगत स्कोर है।

1962 में नवाब पटौदी (Tiger Pataudi) ‘इंडियन क्रिकेटर ऑफ द ईयर’ रहे। 1968 में वे ‘विस्डन क्रिकेटर ऑफ द ईयर’ बने। नवाब पटौदी ने 1969 में अपनी आटोबॉयोग्राफी ‘टाइगर्स टेल’ प्रकाशित की। वे 1974-75 में भारतीय टीम के मैनेजर रहे। 2007 में मैरीलेबोन क्रिकेट क्लब ने भारत और इंग्लैंड के बीच पटौदी ट्रॉफी का आयोजन किया, जो उनके पिता इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी के सम्मान में आयोजित की गई थी। 22 सिंतबर 2011 को दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में नवाब मंसूर अली खां पटौदी का इंतक़ाल हो गया था. अंतिम सांस लेने से पहले नवाब पटौदी ने अपनी आंख दान करने का इच्छा जताई थी, जिसे पूरा किया गया।

teamht http://HeritageTimes.in

Official Desk of Heritage Times Hindi