पटना यूनिवर्सिटी ने राजनीति के अलावा सामाजिक कार्यों व अन्य क्षेत्रों में कई दिग्गज देने वाला यह देश का सातवां सबसे पुराना विश्वविद्यालय है। बताते चले के पटना यूनिवर्सिटी का इतिहास बहुत धनी है। इस यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रों में लोकनायक जयप्रकाश नारायण, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, फ़िल्म अभिनेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा, केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा, पूर्व रेलमंत्री व राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, सामाजिक कार्यकर्ता व सुलभ इंटरनैशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक समेत कई विशिष्ठ लोग शामिल हैं। छात्रसंघ चुनाव लड़ कर यहाँ से कई बड़े लीडर बने, चाहे वो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हों या फिर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ही क्यों न हों और यहीं से सैयद शहाबुद्दीन ने अपनी छात्र राजनीति की शुरूआत की थी, जिन्होंने सबसे पहले पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के गठन के लिए आंदोलन का नेतृतव किया था। और यहीं से वो संयुक्त राष्ट्र के छात्र एसोसिएशन व छात्रों के लिए राहत समिति के साथ जुड़े थे जिसके बाद 1955 में वर्ल्ड यूनिवर्सिटी सेवा की राष्ट्रीय समिति के सचिव निर्वाचित किए गए थे। खास बात यह कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा पटना कॉलेज के टीचर भी रह चुके हैं। ये तो उन लोगों का नाम है जिन्हे पटना विश्वविद्यालय ने स्थापित किया पर मै अभी आपको उन लोगों से रूबरू कराने जा रहा हूँ जिन्होंने पटना यूनिवर्सिटी की स्थापना में अहम भूमिका अदा किया है।
पटना में लड़कियों के लिए स्कूल खोलने वाले बादशाह नवाब रिज़वी
इसकी शुरुआत 1912 से होती है, उस समय तक बिहार बंगाल का हिस्सा था। अंग्रेज़ों की फूट डालो शासन करो की नीति थी अपने उरूज पर थी, वो धर्म, जाति, भाषा के इलावा इलाक़ा पर भी लोगों को बाँट रहे थे। ऐसी ही कोशिश उन्होंने बंगाली और बिहारी में झगडा करवाने के लिए की। वो बिहार के इलाक़े मे अच्छे शिक्षा संस्थान खुलने नही देते थे। इस वजह कर बंगाली पढ़े लिखे होते थे और बिहारी शिक्षा में पिछड़े थे। वजह वही, बिहार में अच्छे शिक्षा संस्थानो का ना होना।
1896 तक बिहार में मेडिकल, इंजिऩरिंग की पढ़ाई का कोई भी संस्थान कॉलेज के रूप में नही था और कलकत्ता के मेडिकल और इंजिऩरिंग कालेज में बिहार के छात्रों को स्कौलरशिप नही मिलती थी।
शिक्षा और सरकारी नौकरीयों मे बहाली के मामलों पर बिहारी लोगों से बहुत ही नाइंसाफ़ी की जाती थी, वकालत और डॉकटरी जैसे पेशों पर बंगालियों का ही क़ब्ज़ा था।
इस तरह के बरताव से तंग आ कर महेश नारायण, मुहम्मद शरफ़ुद्दीन, अनुग्रह नारायण सिंह, मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन, अली ईमाम, नंद किशोर लाल, राय बहादुर कृष्ण सहाय, नवाब सरफ़राज़ हुसैन ख़ान, गुरु प्रसाद सेन, सच्चिदानंद सिन्हा, मज़हरुल हक़ और हसन ईमाम ‘बिहार’ को बंगाल से अलग कराने के काम मे लग गए।
जब बिहार आंदोलन से जुड़े लोगों ने वॉयसराय लॉर्ड हार्डिंग की मूर्ति पटना के पार्क में लगवाई….
अप्रैल 1908 को पहला बिहार राज्य सम्मेलन पटना में अली इमाम की अध्यक्षता में हुआ और दूसरा 1909 में सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता मे भागलपुर मे हुआ। इन दोनो कांफ़्रेंस मे एक अलग राज्य “बिहार” की मांग करते हुए रिज़ुलुशन पास किया गया।
25 अगस्त 1911 को सर अली इमाम ने एक रिपोर्ट सबमिट कर हिन्दुस्तान की राजधानी कलकत्ता को बदल कर नई दिल्ली करने का सुझाव दिया, जिसे स्विकार किया गया।
उस रिपोर्ट को सबमिट करने वाले आठ लोगो की टीम मे अली इमाम एकलौते भारतीय थे, इसलिए उन्होने उस वक़्त के हकुमत को ये समझाया की बिहार की भाषा, संस्कृति और समाज बंगाल से बिलकुल अलग है, इस लिए बिहार को एक अलग राज्य बनाया जाए। जिसके बाद 22 मार्च 1912 को बिहार और उड़ीसा राज्य वजूद मे आया।
एक अलग राज्य तो बन गया, लेकिन यहाँ कोई यूनिवर्सिटी नहीं थी। बिहार और उड़ीसा के लिए युनिवर्सिटी की सबसे पहली मांग मज़हरुल हक़ ने 1912 मे की थी, उनका मानना था के बिहार और उड़ीसा का अपना एक अलग युनिवर्सिटी होना चाहिए, फिर इस बात का समर्थन सचिदानंद सिन्हा ने भी किया।
सच्चिदानंद सिन्हा : एक जन्मजात चक्रवर्ती
इन्ही लोगों की कोशिश की वजह कर सरकार द्वारा अंग्रेजों और भारतीय की 18 सदस्यीय ‘नाथन कमेटी’ बनाई गई। इस कमेटी ने 1913 में अपनी रिपोर्ट दी। कमेटी ने ‘यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन’ की तर्ज पर पटना विश्वविद्यालय की स्थापना करने की अनुशंसा की। ‘नाथन कमेटी’ में सचिदानंद सिन्हा, मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन और जस्टिस नूरुल होदा जैसे बड़े नाम थे। पटना युनिवर्सिटी बिल को लेकर 1916 के 1917 के बीच लम्बी जद्दोजेहद हुई।
![Members of the Nathan Committee. Seated [L-R: Mr. C. Russell (Principal, Patna College), Raja Rajendra Narayan Bhanj Deo of Kanika, Mr. R. Nathan, Mr. N. Hoda, Mr. J. G. Jennings (Principal, Muir Central College, Allahabad and DPI, Bihar and Orissa]. Standing [L-R: Mr. P. C. Tallents (Secretary), Mr. D. N. Sen (Principal B. N. College), Mr. W. A. J. Archbold (Principal, Dacca (Dhaka) College), Dr. Sachchidananda Sinha (Later became 1st President of the Constituent Assembly of India), Bishop of Chota Nagpur, Mr. R. W. F. Shaw (Principal, Ravenshaw College, Cuttack), Rai Bahadur Sheo Shankar Sahay, Prof. K. S. Caldwell (Professor of Chemistry at Patna College), Khan Bahadur Saiyid Muhammad Fakhr-ud-din (Later became Education Minister in 1924), Mr. V. H. Jackson (Professor of Physics at Patna College), Rai Bahadur Dwarka Nath). Missing [ Mr. A. G. Wright (DPI, Central Province) and Mr. Madhusudan Das)Photo was taken in front of the Patna College (established 9th January 1863).](https://hindi.heritagetimes.in/wp-content/uploads/2024/10/d25e9ffd-d0b5-408d-bc3e-31906712515a.jpeg 1600w, https://hindi.heritagetimes.in/wp-content/uploads/2024/10/d25e9ffd-d0b5-408d-bc3e-31906712515a-300x224.jpeg 300w, https://hindi.heritagetimes.in/wp-content/uploads/2024/10/d25e9ffd-d0b5-408d-bc3e-31906712515a-1024x763.jpeg 1024w, https://hindi.heritagetimes.in/wp-content/uploads/2024/10/d25e9ffd-d0b5-408d-bc3e-31906712515a-768x572.jpeg 768w, https://hindi.heritagetimes.in/wp-content/uploads/2024/10/d25e9ffd-d0b5-408d-bc3e-31906712515a-1536x1144.jpeg 1536w)
पटना युनिवर्सिटी बिल को लेकर 1916 के 1917 के बीच लम्बी जद्दोजेहद हुई। 1916 में कांग्रेस के लखनऊ सेशन में पटना युनिवर्सिटी बिल को ले कर चर्चा हुई। इंपीरियल विधान परिषद मे 5 सितम्बर 1917 को इस बिल को पेश किया गया जिसमे वहां मौजुद लोगों से राय मांगी गई, 12 सितम्बर 1917 को इस बिल पर चर्चा हुई और मौलाना मज़हरुल हक़ द्वारा दिए गए समर्थन के कारण 23 सितम्बर 1917 को इस बिल को पास कर दिया गया।
जहां राजेंद्र प्रासाद चाहते थे के पटना में क्षेत्रीय युनिवर्सिटी बने जहां लोकल भाषा में पढ़ाई हो; वहीं सैयद सुल्तान अहमद पटना के युनिवर्सिटी को विश्वस्तरीय बनवाना चाहते थे और बात सुल्तान अहमद की ही मानी गई।
शायद इसी बात को लेकर 1916 मे बड़ी तादाद मे छात्र पटना में यूनिवर्सिटी बनाने का विरोध कर रहे थे तब सैयद सुल्तान अहमद ने छात्रों से बात की और उन्हे संतुष्ट किया और इस तरह पटना यूनिवर्सिटी के बनने का रस्ता खुल गया।
कर्ज़न रीडिंग रूम: ख़ान बहादुर ख़ुदाबख़्श ख़ान की आख़री निशानी
पटना यूनिवर्सिटी एक्ट पास होने के बाद 1 अक्तुबर 1917 को इस तरह पटना युनिवर्सिटी की स्थापना हुई। पटना विश्वविद्यालय के पहले कुलपति होने का गौरव जॉर्ज जे. जिनिंग्स ने पाया। उनका यह पद अवैतनिक था। इसकी वजह थी कि जिनिंग्स उन दिनों बिहार, बंगाल और उड़ीसा के प्रशासनिक अधिकारी भी थे। पटना विश्वविद्यालय में कुलपतियों को वेतन मिलने का सिलसिला विश्वविद्यालय एक्ट, 1951 के लागू होने के बाद शुरू हुआ। वेतन मिलने के बाद कुलपति के रूप में पहली नियुक्ति के. एन. बहल की हुई थी।
शुरू में इसके वाईस चांसलर अंग्रेज़ थे। वो इसे अपने हिसाब से चला रहे थे। लेकिन जैसे ही ज़िम्मेदारी भारतीयों को मिली उन्होंने इसे अपने हिसाब संवारना, सजाना और भव्य करना शुरू कर दिया। पटना यूनिवर्सिटी के पहले भारतीय मूल के वाईस चांसलर सैयद सुल्तान अहमद बने पर वो 15 अक्तुबर 1923 से लेकर 11 नवम्बर 1930 तक इस पद पर बने रहे। उनके दौर में ही पटना यूनिवर्सिटी में पटना साइंस कॉलेज, पटना मेडिकल कॉलेज और बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज, तिब्बी कॉलेज, आयुर्वेदा कॉलेज, वेटनेरी कॉलेज वजूद मे आया; जो उनकी बड़ी उप्लब्धी थी।
बिहार में दर्जनों आधुनिक शिक्षण संस्थान खोलने वाले सैयद विलायत अली ख़ान
ख़्वाजा मुहम्मद नुर भारतीय मुल के दूसरे वाईस चांसलर बने जो 23 अगस्त 1933 से 22 अगस्त 1936 तक इस पद पर बने रहे वहीं, पटना युनिवर्सिटी को स्थापित करने में अपना बड़ा किरदार अदा करने वाले सच्चिदानंद सिन्हा 23 अगस्त 1936 से 31 दिसम्बर 1944 तक इसके वाईस चांसलर रहे। उनके बाद सी.पी.एन. सिंह 1 जनवरी 1945 को पटना युनिवर्सिटी के वाईस चांसलर बने और भारत की आज़ादी के बाद भी 20 जुन 1949 तक इस पद पर बने रहे। सी.पी.एन सिंह ने ही पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स की शुरुआत पटना युनिवर्सिटी मे की।
ख़ास बात यह है कि इसका कार्यक्षेत्र नेपाल और उड़ीसा तक फैला हुआ था। पटना यूनिवर्सिटी की स्थापना के बाद इससे 3 कॉलेज, 5 एडेड कॉलेज और वोकेशनल कॉलेजों को भी जोड़ा गया। इस समय पटना विश्वविद्यालय में कॉमर्स यूनिवर्सिटी, बी. एन. कॉलेज, साइंस कॉलेज, पटना कॉलेज, पटना कला और शिल्प महाविद्यालय, मगध महिला कॉलेज और लॉ कालेज शामिल हैं। अपनी स्थापना के पहले 25 वर्षों में पटना विश्वविद्यालय ने बेहतरीन शिक्षा देकर ख़ूब नाम कमाया। इसे ‘ऑवक्सफ़ोर्ड ऑफ द ईस्ट’ भी कहा जाने लगा।
पटना युनिवर्सिटी को वजूद मे लाने मे अपना अहम रोल अदा करने वाले मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन ने 1921 से 1933 के बीच बिहार के शिक्षा मंत्री रहते हुए पटना युनिवर्सिटी के कई बिलडिंग और हॉस्टल का निर्मान करवाया, चाहे वो बी.एन कॉलेज की नई ईमारत हो या फिर उसका तीन मंज़िला हास्टल, साईंस कॉलेज की नई ईमारत हो या फिर उसका दो मंज़िला हास्टल, इक़बाल हास्टल भी उन्ही की देन है। रानी घाट के पास मौजूद पोस्ट ग्रेजुएट हास्टल भी उन्होने बनवाया था। साथ ही पटना ट्रेनिंग कॉलेज की ईमारत उन्ही की देन है।
सर मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन, बिहार का सबसे बड़ा नायक
इसी दौरान कई बिहार के कई देसी राजा महराजा और नवाबो ने ज़मीन और पैसा डोनेट किया जिसके बाद पटना युनिवर्सिटी की बिलडिंग और दफ़्तर खुले। सर गणेश दत्त ने पटना युनिवर्सिटी को वजुद मे लाने मे अपना अहम रोल अदा किया था। अपने मंत्री पद का लाभ उन्होंने पटना युनिवर्सिटी को खूब दिया। मंत्रिपद से हटने पर सर गणेश दत्त ने पटना कालेज के उत्तर पूर्व कोने पर कृष्ण-कुंज नामक मकान बनवाया जहां उनका शेष जीवन गंगातट पर बीता। जीवन काल में ही उन्होंने वसीयतनामा लिखकर यह मकान ज़मीन सहित पटना युनिवर्सिटी को डोनेट कर दिया। सन् 1945 से कृष्ण-कुंज में मनोविज्ञान की पढ़ाई होने लगी।
आज ऑवक्सफ़ोर्ड ऑफ़ था ईस्ट कहलाने वाला पटना युनिवर्सिटी 100 साल से अधिक पुराना हो चुका है, ज़रुरत इस बात की है इसे स्थापित करने वालों को याद किया जाए।