ऑक्सफ़ोर्ड ऑफ़ द ईस्ट ‘पटना विश्वविद्यालय’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?

पटना युनिवर्सिटी बिल को लेकर 1916 के 1917 के बीच लम्बी जद्दोजेहद हुई। 1916 में कांग्रेस के लखनऊ सेशन में पटना युनिवर्सिटी बिल को ले कर बात हुई. इंपीरियल विधान परिषद मे 5 सितम्बर 1917 को इस बिल को पेश किया गया जिसमे वहां मौजुद लोगों से राय मांगी गई, 12 सितम्बर 1917 को इस बिल पर चर्चा हुई और मौलाना मज़हरुल हक़ द्वारा दिए गए समर्थन के कारण 23 सितम्बर 1917 को इस बिल को पास कर दिया गया।

पटना विश्वविद्यालय ने राजनीति के अलावा सामाजिक कार्यों व अन्य क्षेत्रों में कई दिग्गज देने वाला यह देश का सातवां सबसे पुराना विश्वविद्यालय है। अपने स्वर्णिम अतीत से लेकर कई उतार-चढ़ाव देख चुका यह विश्वविद्यालय इन दिनों छात्रसंघ चुनाव को ले कर वयस्त है. पटना विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रसंघ चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी है। 28 पदों के लिए चुनाव होगा, जिनमें पांच पद सेंट्रल पैनल, जबकि 23 पद काउंसलर्स के हैं। सेंट्रल पैनल में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, संयुक्त सचिव और कोषाध्यक्ष को चुना जाएगा। इन पदों के लिए विश्वविद्यालय का कोई भी नियमित छात्र उम्मीदवार हो सकता है। कम से कम एक साल ड्यूरेशन वाले सेल्फ फाइनेंसिंग और वोकेशनल कोर्स के छात्र भी ऑफिस बियरर के पांच पदों के लिए खड़े हो सकते हैं. और अब छात्र संघ चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है, जल्द ही रिजल्ट भी सामने होगा।

बताते चले के पटना विश्वविद्यालय का इतिहास बहुत धनी है. इस विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों में लोकनायक जयप्रकाश नारायण, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, फिल्म अभिनेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा, केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा, पूर्व रेलमंत्री व राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, सामाजिक कार्यकर्ता व सुलभ इंटरनैशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक समेत कई विशिष्ठ लोग शामिल हैं। छात्रसंघ चुनाव लड़ कर यहाँ से कई बड़े लीडर बने, चाहे वो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हों या फिर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ही क्यों न हों और यहीं से सैयद शहाबुद्दीन ने अपनी छात्र राजनीति की शुरूआत की थी, जिन्होंने सबसे पहले पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के गठन के लिए आंदोलन का नेतृतव किया था। और यहीं से वो संयुक्त राष्ट्र के छात्र एसोसिएशन व छात्रों के लिए राहत समिति के साथ जुड़े थे जिसके बाद 1955 में वर्ल्ड यूनिवर्सिटी सेवा की राष्ट्रीय समिति के सचिव निर्वाचित किए गए थे। खास बात यह कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा पटना कॉलेज के प्राध्यापक भी रह चुके हैं। ये तो उन लोगों का नाम है जिन्हे पटना विश्वविद्यालय ने स्थापित किया पर मै अभी आपको उनलोगो से रूबरू कराने जा रहा हूँ जिन्होंने पटना विश्वविद्यालय की स्थापना में अहम् भूमिका अदा किया था।

1912 तक बिहार बंगाल का हिस्सा था। बंगाली पढ़े लिखे और बिहारी शिक्षा में पिछड़े थे। वजह था बिहार में अच्छे शिक्षा संस्थानो का ना होना, बंगाली बिहार के इलाक़े मे अच्छे शिक्षा संस्थान खुलने नही देते थे। 1896 तक बिहार में मेडिकल, इंजिऩरिंग की पढ़ाई का कोई भी संस्थान नही था और कलकत्ता के मेडिकल और इंजिऩरिंग कालेज मे बिहार के छात्रों को स्कौलरशिप नही मिलता था। वैसे भी उस समय बिहार नाम का राज्य वजूद में नहीं आया था, ये बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा हुआ करता था, जहा बिहारियों को दोयम दर्जे का नागरिक मन जाता था, उनके साथ कई तरह के भेद भाव किये जाते थे।

शिक्षा और सरकारी नौकरीयों मे बहाली के मामलों पर बिहारी लोगों से बहुत ही नाइंसाफ़ी की जाती थी, वकालत और डॉकटरी जैसे पेशों पर बंगालीयों का ही क़ब्ज़ा था। इस तरह के बरताव से तंग आ कर महेश नारायण, अनुग्रह नारायण सिंह, नंद किशोर लाल, राय बहादुर, कृष्ण सहाय, गुरु प्रसाद सेन, सच्चिदानंद सिन्हा, मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन, अली ईमाम, मज़हरुल हक़ और हसन ईमाम ‘बिहार’ को बंगाल से अलग कराने के काम मे लग गए। अप्रील 1908 को पहला बिहार राज्य सम्मेलन अली इमाम की अध्यक्षता मे पटना मे हुआ और दुसरा 1909 में सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता मे भागलपुर मे हुआ। और तीसरा 1911 में मज़हरुल हक़ की अध्यक्षता मे पटना मे हुआ, इन तीनो कांफ़्रेंस मे एक अलग राज्य “बिहार” की मांग करते हुए रिज़ुलुशन पास किया गया।

25 अगस्त 1911 को सर अली इमाम ने एक रिपोर्ट सबमिट कर हिन्दुस्तान की राजधानी कलकत्ता को बदल कर नई दिल्ली करने का सुझाव दिया, जिसे स्विकार किया गया। उस रिपोर्ट को सबमिट करने वाले आठ लोगो की टीम मे अली ईमाम एकलौते हिन्दुस्तानी थे, इसलिए उन्होने उस वक़्त के हकुमत को ये समझाया की बिहार की भाषा, संस्कृति और समाज बंगाल से बिलकुल अलग है, इस लिए बिहार को एक अलग राज्य बनाया जाए। जिसके बाद 22 मार्च 1912 को बिहार वजुद मे आया।

बिहार और उड़ीसा के लिए युनिवर्सिटी की सबसे पहली मांग मौलाना मज़हरुल हक़ ने 1912 मे की थी, उनका मानना था के बिहार और उड़ीसा का अपना एक अलग युनिवर्सिटी होना चाहीये फिर इस बात का समर्थन सचिदानंद सिन्हा ने भी किया। जिसके बाद सरकार द्वारा अंग्रेजों और भारतीय की 18 सदस्यीय ‘नाथन कमेटी’ बनाई गई। इस कमेटी ने 1913 में अपनी रिपोर्ट दी। कमेटी ने ‘यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन’ की तर्ज पर पटना विश्वविद्यालय की स्थापना करने की अनुशंसा की। ‘नाथन कमेटी’ में सच्चिदानंद सिन्हा, सर मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन और जस्टिस नूरुल होदा जैसे बड़े नाम थे. पटना युनिवर्सिटी बिल को लेकर 1916 के 1917 के बीच लम्बी जद्दोजेहद हुई। 1916 में कांग्रेस के लखनऊ सेशन में पटना युनिवर्सिटी बिल को ले कर बात हुई. इंपीरियल विधान परिषद मे 5 सितम्बर 1917 को इस बिल को पेश किया गया जिसमे वहां मौजुद लोगों से राय मांगी गई, 12 सितम्बर 1917 को इस बिल पर चर्चा हुई और मौलाना मज़हरुल हक़ द्वारा दिए गए समर्थन के कारण 23 सितम्बर 1917 को इस बिल को पास कर दिया गया।

जहां राजेंद्र प्रासाद चाहते थे के पटना में छेत्रिय युनिवर्सिटी बने जहां लोकल भाषा में पढ़ाई हो वहीं सैयद सुल्तान अहमद पटना के युनिवर्सिटी को विश्वस्तरीय बनवाना चाहते थे और बात सुल्तान अहमद की ही मानी गई। शायद इसी बात को लेकर 1916 मे बड़ी तादाद मे छात्र पटना मे यूनिवर्सिटी बनाने का विरोध कर रहे थे तब सैयद सुल्तान अहमद ने छात्रों से बात की और उन्हे संतुष्ट किया और इस तरह पटना यूनिवर्सिटी के बनने का रस्ता खुल गया। पटना यूनिवर्सिटी एक्ट पास होने के बाद 1 अक्तुबर 1917 को इस तरह पटना युनिवर्सिटी की स्थापना हुई। पटना विश्वविद्यालय के पहले कुलपति होने का गौरव जॉर्ज जे. जिनिंग्स ने पाया। उनका यह पद अवैतनिक था। इसकी वजह थी कि जिनिंग्स उन दिनों बिहार, बंगाल और उड़ीसा के प्रशासनिक अधिकारी भी थे। पटना विश्वविद्यालय में कुलपतियों को वेतन मिलने का सिलसिला विश्वविद्यालय एक्ट, 1951 के लागू होने के बाद शुरू हुआ। वेतन मिलने के बाद कुलपति के रूप में पहली नियुक्ति के. एन. बहल की हुई थी। इस विश्वविद्यालय का प्रशासन अब तक 51 कुलपति संभाल चुके हैं।

पटना यूनिवर्सिटी के पहले भारतीय मुल के वाईस चांसलर सैयद सुल्तान अहमद बने पर वो 15 अक्तुबर 1923 से लेकर 11 नवम्बर 1930 तक इस पद पर बने रहे। उनके दौर में ही पटना यूनिवर्सिटी में पटना साइंस कॉलेज, पटना मेडिकल कॉलेज और बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज वजुद मे आया जो उनकी सबसे बड़ी उप्लब्धी थी। ख़्वाजा मुहम्मद नुर भारतीय मुल के दूसरे वाईस चांसलर बने जो 23 अगस्त 1933 से 22 अगस्त 1936 तक इस पद पर बने रहे वहीं, पटना युनिवर्सिटी को स्थापित करने में अपना बड़ा किरदार अदा करने वाले सच्चिदानंद सिन्हा 23 अगस्त 1936 से 31 दिसम्बर 1944 तक इसके वाईस चांसलर रहे उनके बाद सी.पी.एन. सिंह 1 जनवरी 1945 को पटना युनिवर्सिटी के वाईस चांसलर बने और भारत की आज़ादी के बाद भी 20 जुन 1949 तक इस पद पर बने रहे। सी.पी.एन सिंह ने ही पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स की शुरुआत पटना युनिवर्सिटी मे की।

खास बात यह है कि इसका कार्यक्षेत्र नेपाल और उड़ीसा तक फैला हुआ था। पटना यूनिवर्सिटी की स्थापना के बाद इससे 3 कॉलेज, 5 एडेड कॉलेज और वोकेशनल कॉलेजों को भी जोड़ा गया। इस समय पटना विश्वविद्यालय में कॉमर्स यूनिवर्सिटी, बी. एन. कॉलेज, साइंस कॉलेज, पटना कॉलेज, पटना कला और शिल्प महाविद्यालय, मगध महिला कॉलेज और लॉ कालेज शामिल हैं। अपनी स्थापना के पहले 25 वर्षों में पटना विश्वविद्यालय ने बेहतरीन शिक्षा देकर खूब नाम कमाया। इसे ‘ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट’ भी कहा जाने लगा। पटना युनिवर्सिटी को वजुद मे लाने मे अपना अहम रोल अदा करने वाले मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन ने 1921 से 1933 के बीच बिहार के शिक्षा मंत्री रहते हुए पटना युनिवर्सिटी के कई बिलडिंग और हॉस्टल का निर्मान करवाया, चाहे वो बी.एन कॉलेज की नई ईमारत हो या फिर उसका तीन मंज़िला हास्टल, साईंस कॉलेज की नई ईमारत हो या फिर उसका दो मंज़िला उसका हास्टल, इक़बाल हास्टल भी उन्ही की देन है। रानी घाट के पास मौजुद पोस्ट ग्रेजुएट हास्टल भी उन्होने बनवाया साथ ही पटना ट्रेनिंग कॉलेज की ईमारत उन्ही की देन है।

इसी दौरान कई बिहार के कई देसी राजा महराजा और नवाबो ने ज़मीन और पैसा डोनेट किया जिसके बाद पटना युनिवर्सिटी की बिलडिंग और दफ़्तर खुले। मंत्रिपद से हटने पर सर गणेश दत्त ने पटना कालेज के उत्तर पूर्व कोने पर कृष्ण-कुंज नामक मकान बनवाया जहां उनका शेष जीवन गंगातट पर भगवद्भजन में बीता। जीवन काल में ही उन्होंने वसीयतनामा लिखकर यह मकान जमीन सहित पटना विश्वविद्यालय को दान कर दिया। सर गणेश दत्त ने पटना युनिवर्सिटी को वजुद मे लाने मे अपना अहम रोल अदा किया था. अपने मंत्री पद का लाभ उन्होंने पटना युनिवर्सिटी को खूब दिया. सन् 1945 से कृष्ण-कुंज में मनोविज्ञान की पढ़ाई होने लगी। आज पुर्व का ऑक्सफ़ोर्ड कहलाने वाला पटना युनिवर्सिटी 100 साल का हो चुका है ज़रुरत इस बात की है इसे स्थापित करने वाले को भी याद किया जाये।

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.