नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज में महिलाओं का योगदान

नेताजी सुभाष चंद्र बोस – भारत के स्वाधीनता संग्राम का वो सिपाही जिसने ICS की नौकरी को देशसेवा के लिए ठुकरा दिया, जो  ग्यारह बार जेल गया और अंग्रेज़ उसे भारतीय जेल में न रख देश के बाहर की जेल में क़ैद करते थे। लेकिन इस सब के बावजूद नेताजी का आम परिचय आज़ाद हिंद फ़ौज के जनरल के तौर पर ही होता है।
आज़ाद हिंद फ़ौज वो सेना थी जिसमें औरत और मर्द दोनों ने एक साथ देश की आज़ादी के लिए अंग्रेज़ों से युद्ध किया था। जहाँ एक तरफ अधिकतर मर्द पहले अंग्रेज़ सेना में थे और युद्धबंदी थे वहीं दूसरी तरफ़ औरतें आम नागरिक थी। ये बात हम भूल जाते हैं कि अंग्रेज़ फ़ौज में औरतें थी ही नहीं तो ऐसे में उनका भर्ती होना एक बड़ा क़दम था। चलिए बात करते हैं इन आज़ाद हिंद फ़ौज की औरतों की जिनको रानी भी कहा जाता था।
डॉ. लक्ष्मी स्वामी नाथन के अनुसार आज़ाद हिंद फ़ौज की महिला सिपाही कुँवारी लड़कियाँ, शादीशुदा औरतें, माँ-बेटी, के इलावा वो बहन, बेटी और पत्नी भी थीं, जिनके भाई, बाप या पति आज़ाद हिंद फ़ौज या इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के सदस्य थे। इसके इलावा इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सहित बंगाली, गोरखा, तमिल, मलयाली, गुजराती पंजाबी, ओड़ीया आदि सब थीं। लेकिन इसमें अधिकतर तमिल क़ुली महिलाएँ थीं।
पुस्तक Netaji, Azad Hind Sarkar & Fauj : Removing Smokescreens के अनुसार नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी पनडुब्बी यात्रा के दौरान ही एक महिला रेजिमेंट के गठन की योजना बनाई थी। पनडुब्बी में उनके साथ रहे आबिद हसन के अनुसार, नेताजी बोस नहीं चाहते थे कि महिलाएं सती होने के लिए जलती हुई चिताओं में कूदें, बल्कि झांसी की रानी की तरह तलवार हाथ में लिए मैदान में आएँ।
जर्मनी से सिंगापुर पहुंचने के कुछ ही दिनों बाद नेताजी ने 9 जुलाई 1943 को सिंगापुर में एक विशाल जनसमूह, जिसमें लगभग 60,000 भारतीये थे, को संबोधित किया। भाषण में, नेताजी ने प्रत्येक सक्षम भारतीय से आईएनए में भर्ती होने के साथ महिलाओं से एक ख़ास माँग की: “मैं चाहता हूं कि बहादुर भारतीय महिलाओं की ‘मौत को भी मात देने वाली रेजिमेंट’ बनाई जाए, जो भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की नाईका झांसी की बहादुर रानी की तरह तलवार चलाए”
डॉ. लक्ष्मी स्वामी नाथन ने इसके लिए सबसे पहले हामी भरी। और महिलाओं को सैन्य प्रशिक्षण के लिए तैयार करने के लिए वो दौरे पर निकल पड़ी। बड़ी संख्या में लड़कियाँ उनके साथ जुड़ी। और सिंगापुर में ही 22 अक्टूबर 1943 को एक ट्रेनिंग कैम्प खोलते हुए नेताजी ने रानी झांसी रेजीमेंट की घोषणा की, जिसमें उस समय सौ रानी ने हिस्सा लिया था। महिला सैनिकों को रानी कहकर बुलाया जाता था। डॉ. लक्ष्मी स्वामी नाथन को रेजीमेंट का पहला कैप्टन बनाया गया।
महबूब अहमद ब्रिटिश इंडिया फ़ौज में सेकंड लेफ़्टिनेंट थे। 1943 में पहली बार उन्हें सिंगापुर के ‘कैथे भवन’ में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का भाषण सुनने का मौक़ा मिला और उनसे प्रेरित होकर वो आज़ाद हिंद फ़ौज का हिस्सा बन गए। इस बारे में महबूब अहमद ख़ुद लिखते हैं कि – “नेताजी की आवाज़ का जादू इतना प्रभावशाली था सारे लोग उन्हें मन्त्र-मुग्ध सा सुन रहे थे। ‘कैथे भवन’ चश्मदीद गवाह है उस भावनात्मक पल का जब उस सभा में मौजूद एक 70 वर्षीय बूढी औरत ने चाकू से अपनी ऊँगली काटकर नेताजी के माथे पर खून का टीका लगाते हुए उनके सफल और दीर्घायु होने की दुआ मांगी थी। वह लम्हा आज भी आँखों में रक्स कर जाता है. मेरी आँखें आज भी पुरनम हो आती हैं. सोचता हूँ :- या खुदा, वह कौन सी ताकत थी जिसने बच्चे से लेकर बूढों तक में कुर्बानी का जज्बा पैदा कर दिया था, जिसने मिट्टी का क़र्ज़ अदा करने के फ़र्ज़ की याद दिला दी थी. पूरा भवन ‘जय हिन्द’ के नारे से गूँज उठा था।”
इस दौरान महबूब अहमद कई महत्वपूर्ण घटनाओं के साक्षी भी रहे। उन्होंने अपनी पुस्तक में रंगून में 17 रानियों द्वारा अपने ख़ून से प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर करने, नेताजी को सोने की फ़ोटो फ़्रेम देने वाली बुज़ुर्ग महिला आदि विभिन्न अवसरों का ज़िक्र किया है के किस तरह महिलाओं ने आज़ाद हिंद फ़ौज के स्थापना में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
जतिन दास शहादत दिवस के मौक़े पर 21 सितम्बर 1944 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने रंगून के जुबली हॉल में नारा दिया “तुम हमको ख़ून दो, मैं तुमको आज़ादी दूँगा” जिसके बाद वहाँ मौजूद भारतीयों में जोश उमड़ पड़ा, लोग चिल्लाने लगे “हम तैयार हैं – हम अपना खून देंगे – इसे अभी ले लीजिए”।
जिसके बाद नेताजी ने लोगों से आत्मघाती दस्ते की शपथ पर हस्ताक्षर करने के लिए आगे आने को कहा। घटना का वर्णन महबूब अहमद ने कुछ इस प्रकार किया गया है –  “नेताजी ने उस सभा को संबोधित करते हुए कहा था, “स्वतंत्रता बलिदान चाहती है. आप लोगों ने आज़ादी के लिए बहुत त्याग किया है, किन्तु अभी प्राणों की आहुति देना बाक़ी है. हमें ऐसे नवयुवकों की आवश्यकता है जो अपने हाथों से अपना सर काट कर स्वाधीनता के लिए न्योछावर कर सकें.” और अंत में उनहोंने गरजती हुई आवाज़ में वह ऐतिहासिक ऐलान किया था, “तुम मुझे ख़ून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा”
नेताजी की इस बुलंद आवाज़ ने पूरे माहौल को एक अजब जूनून से भर दिया था। हर नौजवान उनके इस आह्वान पर अपनी कुर्बानी देने के लिए बेताब हो उठा था। ‘जुबली हॉल’ में हजारों नौजवान स्वर उस ऐतिहासिक आह्वान पर गूँज उठे “हम अपना खून देंगे.” सुभाष बाबू ने ‘जुबली हॉल’ में उपस्थित उन नौजवानों के आगे एक प्रतिज्ञा-पत्र बढ़ाते हुए कहा था, “आप लोग इस प्रतिज्ञा-पत्र पर दस्तखत कीजिए।” जोश से भरे वे नौजवान अचानक सहम गए। एक पल के लिए पूरा माहौल सन्नाटे में डूब गया। युवकों का एक जत्था आगे बढ़ा। उन्हें आगे बढ़ता हुआ देख नेताजी का चुनौती भरा स्वर ‘जुबली हॉल’ में गूंजा था।
इस प्रतिज्ञा-पत्र पर साधारण स्याही से हस्ताक्षर नहीं करना है. जिनकी नसों में सच्चा भारतीय खून बहता हो, जिसे अपने प्राणों का मोह न हो और जो आज़ादी के लिए सर्वस्व लुटाने को तैयार हो सिर्फ वही आगे आए।” मुझे अच्छी तरह याद है उस प्रतिज्ञा-पत्र पर दस्तखत करने के लिए जो पहला जत्था सामने आया उसमें सत्रह लड़कियां थीं। वह बेहद हैरतअंगेज लम्हा था। देखते ही देखते उन लड़कियों ने अपनी कमर में खोंसी हुई छुरियां निकालकर अपनी उँगलियां चीर दी थी और वह प्रतिज्ञा पत्र उनके ख़ून के दस्तखत से रंग गया था।”
ट्रेनिंग कैंप रंगून और बैंकोक में भी खोले गए, जिसमें शंघाई से लेकर मलेशिया तक से भारतीय मूल की महिलाओं ने हिस्सा ले रखा था। यहाँ तक के सेना के इस भाग में कई दर्जन श्रीलंकाई महिलाओं ने भी हिस्सा लिया था। हिंदुस्तान टाइम्ज़ के दिसंबर 1945 के एक रिपोर्ट के अनुसार 200 से अधिक महिला आज़ाद हिंद फ़ौज से जुड़ने शंघाई से अरकान आई थीं। रानी झांसी रेजीमेंट में शामिल होने वाली युवतियों से जुड़े किस्से अद्भुत हैं। एक ओर पूरे परिवार का जुड़ने के मामले सामने आता है और दूसरी ओर हम पाते हैं कि कई लड़कियों ने अपने परिवारों में शामिल होने के लिए विद्रोह कर देती हैं। कुछ तो घरों से भागकर शामिल होने के लिए चली गयी और उनके माता-पिता की कोशिश भी उन्हें वापस नहीं ला पाई।
आम तौर पर ये माना जाता था के इन लोगों ने सिर्फ़ सेना में सिर्फ़ नर्स की हैसियत से अपनी सेवाएं दी हैं, पर प्रोफ़ेसर कपिल ने अपनी पुस्तक में आज़ाद हिंद फ़ौज के कई बड़े अफ़सर के हवाले से कई ऐसे वाक़िये को दिखाया है, जिसमें रानियों का फ़्रंट पर लड़ने और शहीद होने का पता चलता है।
आधुनिक युद्ध के इतिहास में रानी झांसी रेजिमेंट का निर्माण अपने में जुदा है क्योंकि यह दुनिया की पहली आधुनिक महिला रेजिमेंट थी। लेकिन इसके बारे में अधिक जानने और पढ़ने को नहीं मिलता है, ज़रूरत है कि इस पर और शोध हो और इसके बारे में और अधिक अधिक इसकी चर्चा की जाए।
Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.