जंग ए आज़ादी के क़द्दावर नेता और इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदर रहे “मौलाना मोहम्मद अली जौहर” ने जो मुक़ाम हासिल किया था, उसमें तीन लोगों का अहम किरदार था, एक उनकी माँ बी अम्माँ, दूसरे उनके भाई मौलाना शौक़त अली और तीसरी उनकी बीवी अमजदी़ बेगम।
मौलाना मुहम्मद अली जौहर की पत्नी ‘अमजदी बानो बेगम’ ने अपने शौहर की तरह हिन्दुस्तान को आज़ादी दिलाने में अहम किरदार निभाया है। साथ ही उन्होने शिक्षा के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया जिसका एक नमुना आपको हमीदिया गर्लस स्कुल इल्लाहाबाद के रुप मे देखने को मिलेगा जो आज हमीदिया कालेज के नाम से जाना जाता है क़ौमी एत्तेहाद पैदा करने और मुसलमानों की तालीमी पसमांदगी को दूर करने के लिए 1920 मे कौमी इदारा जामिया मिल्लिया इस्लामिया कायम किया था पर जब ख़्वाजा अब्दुल हमीद सहेब जेल मे थे तब ‘अमजदी बानो बेगम’ ने जामिया मीलिया इस्लामिया का सारा दारो मदार अपने काँधे पर ले लिया था ये बताने को काफ़ी है की शिक्षा के प्रती उनका क्या ख़्याल था।
अमजदी़ बानो बेगम की पैदाइश 1885 में रामपुर मे हुई थी, वालिद साहब अज़मत अली ख़ान बड़े सरकारी ओहदे पर फाएज़ थे, माँ का इंतक़ाल बचपन में ही हो गया था। अमजदी़ बेगम की तालीम मज़हबी थी और घर पर ही हुई थी।
17 साल की उम्र में अमजदी़ बेगम की शादी 1902 में मौलाना मुहम्मद अली जौहर से हुई जो उस वक़्त आक्स्फ़र्ड यूनिवर्सिटी के तालिब इल्म थे, 1917 में अमज़दी बेगम ने मुस्लिम लीग के सालाना इजलास में हिस्सा लिया और 1920 में वो ऑल इंडिया ख़िलाफ़त कमिटी की वोमेंस विंग की सेक्रेटरी बनायी गईं।
उन्होने ख़िलाफ़त तहरीक के लिए 1920 के समय 40 लाख रुपये का फंड ‘बी अम्मां’ की मदद से जमा किया। मौलाना मोहम्मद अली की वालिदा बी अम्मा ने मरते दम तक तहरीक ए ख़िलाफ़त और मुसलमानों की बरतरी और एत्तेहाद के लिए जद्दोजेहद की मगर 13 नवम्बर 1924 को उनका इंतकाल हो गया। अपनी जिंदगी में उन्होंने अपनी बेटों को ख़िलाफ़त तहरीक को जिंदा रखने और ब्रिटिश साम्राज के ख़िलाफ़ जद्दोजेहद रखने की तलकीन की। और यही तालीम विरासत मे उनके बहुओं को भी मिला था।
वैसे बी अम्मा क्या थीं इसकी मिसाल इसी बात से मिल जाता है कि बी अम्मा को यह गुमान हो गया कि उनके बेटे (मोहम्मद अली व शौकत अली) ब्रिटिश साम्राज की गर्म सलाख़ों की तपिश बर्दाश्त नहीं कर सके और माफ़ी मांगकर बाहर आज़ादी की फ़जा में आना चाहते हैं; ऐसे में एक मां को बेटों की आमद का इंतज़ार होना चाहिए था, लेकिन वह मां थी जिसने कहा था कि अगर मेरे बेटों ने फ़िरंगियों से माफ़ी मांग ली है और रिहा हो रहे हेै तो मेरे हाथों को अल्लाह इतनी क़ुवत दे कि मैं अपने हाथों से उनके गले दबा कर उन्हें हलाक कर दूं। ऐसी माओं की मिसाल नहीं मिलती। बी अम्मां ख़ुद एक मिसाल हैं।
1921 में अहमदाबाद में हुए कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में अमजदी बानो बेगम ने यू.पी के रिप्रीज़ेंटेटिव की हैसियत से हिस्सा लिया।
ख़िलाफ़त तहरीक में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाली अमजदी बानो बेगम ने अलीगढ़ मे खादी भंडार खुलवाया जिससे वो महिलाअो को स्वादेशी समान ख़रीदने के लिए प्रेरित करतीं थी और उन्हे रोज़गार मोहय्या कराती थीं।
29 नवम्बर 1921 के यंग इंडिया मे गांधी जी ‘अमजदी बानो बेगम’ को ख़िताब करते हुए लिखते हैं :- ” एक बहादुर औरत ” और आगे वो लिखते हैं :- ‘बेगम मोहम्मद अली जौहर के साथ कम करने पर मुझे बहुत चीज़ का तजुरबा हुआ, वो शुरु से ही अपने शौहर के साथ उनके मक़सद मे कंधे से कंधे मिला कर खड़ीं थी, उन्होने ख़िलाफ़त तहरीक के लिए ना सिर्फ़ फ़ंड जमा बलके वो हम लोगो के साथ बिहार, बंगाल, आसाम जैसे रियासत के दौरे पर भी गई और लोगो के अंदर इंक़लाब का मशाल जलाया। मै ये कह सकता हुँ कि वो किसी भी सुरत मे अपने शौहर से कम नही थीं… मद्रास समुंदर के किनारे एक अज़ीम जलसा मुनक़्क़िद किया गया था जिसमे बेगम मोहम्मद अली ने एक ज़बरदस्त इंक़लाबी तक़रीर की, जिसे अवाम ने हाथो हाथ लिया था; उनका भाषण लाजवाब था’
1930 मे लंदन मे हुए गोल मेज़ सम्मेलन मे भी अमजदी बानो बेगम ने अपने पति “मौलाना मुहम्मद अली जौहर” के साथ हिस्सा लिया था।
मौलाना माजिद दरियाबादी कहते हैं :- जिस जगह और जिस मीटिंग में मौलाना जौहर होते वहाँ वहाँ अमज़दी बेगम होती थी।
मौलाना मुहम्मद अली जौहर की वफ़ात के बाद उन्होंने मुस्लिम लीग ज्वाइन कर लिया था जिससे मौलाना के हज़ारों सपोर्टर लीग में चले गए।
1937 में मुस्लिम लीग का सालाना इजलास लखनऊ में हुआ जिसकी सदारत अमजदी बानो बेगम ने की।
28 दिसम्बर 1938 को मुस्लिम लीग का सालाना इजलास मुहम्मद अली जिन्ना की सदारत में पटना में हुआ जिसमें मुस्लिम लीग की वोमेंस विंग का एलान हुआ और उसकी पहली सदर यानी प्रेसीडेंट अमजदी बानो बेगम बनाई गई।
अमज़दी बेगम ने लड़कियों के लिए जहाँ एक तरफ हमिदया गर्ल्ज़ स्कूल खोला वहीं अलीगढ़ में औरतों को रोज़गार मिले इसके लिए खादी भंडार की स्थापना की। वो अवाम तक अपनी बात को पहुँचाने के लिए; उनके अंदर बेदारा और इंकलाब की मशाल जलाने के लिए “रोज़नाम हिन्द” के नाम से उर्दु अख़बार निकालना शुरु किया, और लगातार उसके एडिटर का काम भी अंजाम देती रहीं।
जब जामिया मीलिया इस्लामिया मुश्किल दौर से गुज़रा तो वहाँ भी मुश्किलों के सामने चट्टान की तरह खड़ी हो गई।
अमजदी़ बानो बेगम की सारी ज़िंदगी आज़ादी की जद्दोजहद मे गुज़री मगर अफ़सोस आज़ादी के सुरज रौशन होने से पहले 28 मार्च 1947 को इस दुनिया को आख़िरी सलाम कह गईं।