अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह करने वाले राजा जहांगीर बख़्श ख़ान से जुड़ी 300 साल पुरानी ईमारतें हो रहीं ज़मींनदोज़

परिवार के लोगों ने किला व मजार को सरंक्षित करने की मांग की

मो. असग़र ख़ान/  अलबदर ख़ान

गया: बिहार की राजधानी पटना से करीब पौने दो सौ किलोमीटर दूर दक्षिण में बसे रौशनगंज थाना के मदारपुर गांव में ज़मींदोज़ होती ऐतिहासिक इमारतें अपने को राष्ट्रीय धरोहार घोषित किए जाने की अब आखिरी गुहार लगा रही है. तीन सौ साल पुराना किला,गढ़ और इमारत अब साल दर साल मलबा का ढेर बनता जा रहा है. दूर्भाग्यवश ना ही सरकार की तरफ से उसे संरक्षित करने की कोई कोशिश की गयी है और ना ही आस-पड़ोस के लोग इसकी कोई देख-रेख करते हैं. नतीजा धीरे धीरे यह ऐतिहासिक साक्ष्य समाप्त होता जा रहा है.


गया जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर शेरघाटी अनुमंडल है जहां से रौशनगंज के मदारपुर गांव की दूरी15 किलोमीटर है. इलाके में दाखिल होते ही खंडहर में तब्दील वर्षों पुरानी इमारत का मलबा, चौड़ी कंदिलों (लकड़ी) के सहारे टिकी दिवारें और मक़बरें दिख जाएंगे. गौर करने वाली बात यह है कि ये क्षेत्र बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के विधानसभा क्षेत्र इमामगंज में आता है. जबकि इससे पहले बिहार विधानसभा के दो बार स्पीकर रहे उदय नारायण चौधरी भी 15 साल तक यहां के विधायक रहें. लेकिन बावजूद इस ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने की कोई पहल नहीं की गई.

कौन थें जहांगीर बख्श खान?

दरअसल, 18वीं शताब्दी में शेरघाटी एक परगना (कमिश्नरी) हुआ करता था. तत्कालीन ब्रिटिश ऑफिसर ईएल टैर्नर जो दक्षिण बिहार के सेटलमेंट ऑफिसर थें,उन्होंने अपने सर्वे एंड सेटलमेंट ऑपरेशन रिपोर्ट में (जिसे टैर्नर रिपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है) में लिखा है कि 1728 में नवाब सरबुलंद खान ने नवाब आजम खान रोहिला को शेरघाटी परगना जागीर के तौर पर सौंप दिया था.

1781 में शेरघाटी परगना राजा गुलाम हुसैन खान की संपत्ति थी. राज गुलाम हुसैन खान, आजम खान रोहिला के पोते थें. इसी रिपोर्ट और गोविंद मिश्रा की किताब ‘हिस्ट्री ऑफ बिहार’ का हवाला देते हुए ‘प्रोजेक्ट गुटनबर्ग सेल्फ पब्लिशिंग प्रेस’ की वेबसाइट पर ‘वर्ल्ड हेरिटेज इनसाइक्लोपीडिआ’ लिखता है कि इमामगंज का नाम राजा गुलाम हुसैन खान के बेटे राजा इमाम बख्श खान के नाम पर बसा है. वहीं इमामगंज के नजदीक रानीगंज का इलाका राजा गुलाम हुसैन खान की पत्नी उम्दा रानी के नाम पर बसा है. रिपोर्ट के मुताबिक राजा जहांगीर बख्श खान इसी परिवार से संबंध रखते हैं, जिन्होंने 1857 में अंग्रजों के खिलाफ विद्रोह किया था. राजा जहांगीर बख्श खान की मां रौशन बीबी थीं जिनके नाम पर रौशनगंज को बसाया गया.

परिवार की मांग राष्ट्रीय धरोहर घोषित करे सरकार

इस परिवार से संबंध रखने वाले और गया जिला के मशहूर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर सरताज अली खान (71वर्ष) ई.एल टैर्नर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताते हैं कि राजा जहांगीर बख्श खान 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ हुए विद्रोह में शामिल हुए थें. वो एक बड़े सदाव्रत थें, यानी बिना दान किए वो सुबह का नाश्ता नहीं करते थें. राजा जहांगीर बख्श खान के परिवार से संबंध रखने वाली 74 वर्षीय किश्वर जहां उर्फ छुन्नी बीबी और 72 वर्षीय कनीज़ फ़ातिमा इन दिनों शेरघाटी के काजी मोहल्ला में रहती हैं. किश्वर जहां बताती हैं कि रौशनगंज के करीब एक गांव खैरा है, जो उनके दादा राजा सत्तार बख्श खान का एक वक्त में रियासत हुआ करता था.

राजा सत्तार बख्श खान, राजा जहांगीर बख्श के बेटा,मोहम्मद बख्श खान के सात बेटों में से एक थें. किश्वर जहां, आगे बताती हैं कि उनके वालिद शमशेर अली खान के समय खैरा रियासत समाप्त हो गया था. बकौल किश्वर जहां, उन्हें ये जानकारी उनकी दादी और राजा सत्तार बक्श खान की पत्नी जुबैदा बीबी से  प्राप्त हुई थी. उनकी दादी जुबैदा बीबी ने उन्हें बताया था कि राजा जहांगीर बख्श ने अंग्रेज अधिकारियों को मालगुजारी (लगान) देना बंद कर दिया था. अंग्रेजी सेनाओं की ओर से लगातार हमले का जवाब दिया जाता रहा. जुबैदा बीबी 120 साल तक जिंदा रहीं
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किश्वर जहां द्वारा बताये गये उनके पूवर्जों के क्रम की जानकारी ईएल टैनर्र की रिपोर्ट से भी मिलती है.  टैर्नर रिपोर्ट का जिक्र करते हुए पब्लिक प्रॉसिक्यूटर सरताज अली खां बताते हैं उत्तराखंड इलाके से शेरघाटी की ओर से बड़ी संख्या में रूहेलखंड पठान आए. इन पठानों की अवध के राजा से लड़ाई हुई. उस समय इन पठानों ने अंग्रेजों का भी मुकाबला किया. इनमें राजा जहांगीर बख्श खान का नाम प्रतिष्ठित है. इनके परिवारों की मांग है कि उनके पूर्वजों से संबंधित रौशनगंज के मदापुर में स्थित मज़ार, मक़बरें और किले को सरकार संरक्षित करे और उसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित करे. इनके नाम पर इस इलाके में स्मारक का निर्माण किया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी को ऐतिहास की जानकारी मिल सके.

अफगान स्थापत्यकला का नमूना है

क़िला और मज़ार राजा जहांगीर बख्श खान व उनके परिवार की मज़ार (कब्र) वर्तमान में रौशनगंज के मदारपुर में हैं. इसी कब्र से महज सौ मीटर की दूरी पर किला भी है. करीब डेढ़ एकड़ में फैले इस किले की दिवार एक से दो मीटर चौड़ी है. किले के चारों कोने पर तोपख़ाना हुआ करता था. इनमें से एक तोपख़ाना आज भी अस्तित्व में है. किले के अंदर सुरंग भी हैं. किले में दाखिल होने के लिए चार बड़े बड़े दरवाज़े होते थें, जिनमें से कुछ दरवाज़े आज भी मौजूद हैं.

खंडहर में तब्दील हो रहे है इन ईमारतों बारे में स्थानीय लोगों व जानकारों का कहना है कि यह अफगान स्थापत्यकला का नमूना है. मज़ार और किला की बनावट ससाराम स्थित शेरशाह के मक़बरे से मिलती है. इस बारे में बांके बाजार अंचलाधिकारी संजय कुमार प्रसाद कहते हैं कि मदारपुर इलाके में किला होने की जानकारी पहली बार मिली है. इस संबंध में आगे खोजबीन की जायेगी..!