ब्रजकिशोर प्रसाद का जन्म 14 जनवरी 1877 को सारण के श्रीनगर गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। माँ का नाम समुद्री देवी और वालिद की नाम रामजीवन लाल था, वालिद गया में अफ़ीम के गुदाम में नौकरी किया करते थे। शुरुआती तालीम घर पर ही हासिल की, उर्दू, फ़ारसी, हिंदी, संस्कृत जैसी भाषा सीखी।
कम उम्र में ही 1888 में फूल देवी से शादी हो गई। पर शादी उनके पढ़ाई में बाधा नही पैदा कर सकी। 1890 में ज़िला स्कूल, गया से मैट्रिक की पढ़ाई मुकम्मल कर आगे की पढ़ाई की ख़ातिर कलकत्ता गए, और कलकत्ता प्रेसीडेंसी कॉलेज से बी.ए. और एम.ए. किया। इसी बीच वालिद का इंतक़ाल हो गया, पर आपने हिम्मत न हारी और पढ़ाई जारी रखा। 1898 में क़ानून की पढ़ाई मुकम्मल की और वकालत का पेशा चुना।
उस समय छपरा वकालत के लिए बहुत मशहूर था। ब्रजकिशोर प्रसाद ने 1901 में कलकत्ता से लौट कर छपरा में वकालत शुरू कर दी। देखते ही देखते उनका नाम काफ़ी मशहूर हो गया। पर अपने मेंटॉर डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा की सलाह पर दरभंगा शिफ़्ट हो गए और वहीं वकालत करने लगे। इसी बीच इम्पीरियल कौंसिल के चुनाव में दरभंगा महराज के विरुद्ध डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा खड़े थे। ब्रजकिशोर प्रसाद ने सच्चिदानंद सिन्हा का साथ दिया, और खुल कर उनके लिए वोट माँगे। यहीं से उनका सियासी सफ़र शुरू हुआ और वो खुल कर सियासत में दिलचस्पी लेने लगे।
1910 में दरभंगा नगरपरिषद के सदस्य निर्वाचित हुवे और इसी साल सियासत में लम्बी छलांग लगाते हुवे सीधे बंगाल विधान परिषद के निर्वाचित सदस्य बने। उस समय बिहार एक अलग राज्य नही था। बंगला का हिस्सा था। बिहार को बंगाल से अलग करने का आंदोलन चल रहा था, ब्रजकिशोर प्रसाद भी उस आंदोलन के प्रमुख लोगों में से थे। वो बिहार प्रांतीय सम्मेलन में लगातार हिस्सा लेते रहे।
1912 में एक लम्बे संघर्ष के बाद बिहार अलग राज्य बना, तब ब्रजकिशोर प्रसाद बिहार और उड़ीसा विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुवे। इसी साल बांकीपुर में कांग्रेस पार्टी का सालाना अधिवेशन हुआ, उसे कामयाब बनाने में अहम भूमिका अदा किया। उस समय भारत के वॉयसराय लॉर्ड हार्डिंग ने निजी तौर पर बिहार को अलग राज्य बनाने में विशेष दिलचस्पी ली थी, इसलिए बिहार राज्य के स्थापना हेतु संघर्ष कर रहे आंदोलनकारी लोगों ने वॉयसराय लॉर्ड हार्डिंग के सम्मान में एक स्मारक की स्थापना करने को ठाना। इस काम के लिए 1913 में हार्डिंग मिमोरियल समिति स्थापना होती है, ब्रजकिशोर प्रसाद भी उस समिति के सदस्य थे। इसी कमेटी ने हार्डिंग पार्क की स्थापना की थी।
बिहार प्रांतीय कांग्रेस सम्मेलन के अध्यक्षता बांकीपुर में 10 एप्रिल 1914 को ब्रजकिशोर प्रसाद ने की; अपने भाषण में किसानो के मुद्दे पर ज़ोर दिया। और 1916 में लखनऊ में कांग्रेस पार्टी का सालाना अधिवेशन हुआ, जिसमें पटना यूनिवर्सिटी की स्थापना को लेकर चर्चा होना था; इस अधिवेशन में ब्रजकिशोर प्रसाद न सिर्फ़ बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया; बल्कि यहीं उनकी मुलाक़ात गांधीजी से हुई, और उन्हें चम्पारण आने की दावत भी राजकुमार शुक्ल के साथ दी।
महात्मा गांधी ने जब चंपारण में सत्याग्रह शुरू किया, तब उसे कामयाब बनाने में ब्रजकिशोर प्रसाद ने राजेंद्र प्रसाद और अनुग्रह नारायण सिन्हा के साथ मिल कर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आंदोलन के समय ब्रजकिशोर प्रसाद कई मौक़े पर गांधीजी के साथ ही रहे। 4 से 6 जून 1917 तक महात्मा गांधी के साथ साये की तरह राँची में रहे, जब किसानो के मुद्दे को लेकर गांधीजी अंग्रेज़ी अफ़सर से बात कर रहे थे। ब्रजकिशोर प्रसाद लगातार पटना, राँची और कलकत्ता का दौरा करते रहे। साथ ही उन्होंने इस मुद्दे पर कई लेख भी लिखा, जो विभिन्न अख़बार में छपा भी। 1918 में हसन इमाम और सच्चिदानंद सिन्हा ने मिल कर ‘सर्चलाइट’ अख़बार निकाला तब ब्रजकिशोर प्रसाद ने उसके हिंदी संकरण ‘देश’ की ज़िम्मेदारी अपने कंधे पर लेकर सम्पादक का रोल अदा किया।
1920 में असहयोग और ख़िलाफ़त आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। और देश की आज़ादी की ख़ातिर वकालत को हमेशा के लिए छोड़ दिया, और आंदोलन में कूद पड़े। और 1921 में मौलाना मज़हरूल हक़ के साथ मिल कर बिहार विद्यापीठ की स्थापना में सहयोग दिया। जहां मज़हररुल हक़ बिहार विद्यापीठ के चांसलर बने; वहीं ब्रजकिशोर प्रसाद ने वाइस चांसलर का पद सम्भाला। इसके साथ वो काशी विश्वविद्यालय और पटना यूनिवर्सिटी के सिनेट के सदस्य भी रहे।
1922 में गया में कांग्रेस पार्टी का सालाना अधिवेशन हुआ, उसे कामयाब बनाने में अहम भूमिका अदा किया। ब्रजकिशोर प्रसाद उस अधिवेशन के स्वागताध्यक्ष थे। यहीं पर कांग्रेस पार्टी में दो फाड़ भी हुआ। पर ब्रजकिशोर प्रसाद बिल्कुल ही सकारात्मक भूमिका निभाते हुवे देश सेवा में लगे रहे। और 1928-29 में बिहार प्रांतीय कांग्रेस समिति का गठन हुआ, दीप नारायण और शाह मोहम्मद ज़ुबैर के साथ ब्रजकिशोर प्रसाद समिति के उपाध्यक्ष चुने गए।
1930 में जब गांधीजी ने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की तब उसे बिहार में कामयाब बनाने में अहम रोल अदा किया; नमक क़ानून तोड़ने के जुर्म में मौलवी ख़ुर्शीद हसनैन, जगत नारायण लाल जैसे उनके कई साथी गिरफ़्तार कर लिए गए, पर ब्रजकिशोर प्रसाद को अंग्रेज़ों ने कुछ नही किया। 26 जनवरी 1931 को पूरे भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। पटना के भँवरपोखर पार्क में भी अनुग्रह नारायण सिंह ने राष्ट्रीय झंडा फहराया, इस मौक़े पर राजेंद्र प्रसाद, प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी के साथ ब्रजकिशोर प्रसाद भी मौजूद थे। यहाँ सभी लोगों ने देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करते रहने की क़समें खाईं।
3 जनवरी 1932 को राजेंद्र प्रसाद की सरपरस्ती में एक मीटिंग सदाक़त आश्रम में हुआ, उसी दिन अंग्रेज़ी पुलिस ने सदाक़त आश्रम पर छापा मारा, और ब्रजकिशोर प्रसाद सहित जगत नारायण लाल, मथुरा प्रसाद, प्रजापति मिश्र, राजेंद्र प्रसाद, कृष्णा वल्लभ सहाय को गिरफ़्तार कर लिया। इसके साथ ही सदाक़त आश्रम पर क़ब्ज़ा कर यूनियन जैक फहरा दिया। ब्रजकिशोर प्रसाद को कुछ दिन बांकीपुर जेल में रखा गया, फिर हज़ारीबाग़ जेल भेज दिया गया। उन्हें पाँच माह क़ैद की सज़ा हुई। जेल में उन्हें ज़हर दे दिया गया। बाहर आने के बाद उनकी सेहत गिरने लगी, वो बीमार रहने लगे।
1934 में बिहार भयानक भूकम्प आया; तब तन मन से पीड़ित लोगों की मदद की। पर उनका सेहत उनका साथ नही दे रहा था, वो लगातार बीमार रहने लगे। और अपने जीवन के अंतिम दस सालों तक वो बुरी तरह बीमारी से जूझते रहे और 15 अक्तूबर 1946 को आज़ादी के एक साल पहले उनकी मौत सिवान में हो गई।
रिश्ते में ब्रजकिशोर प्रसाद जय प्रकाश नारायण के ससुर थे, और राजेंद्र प्रसाद के समधी। यानी उनकी एक बेटी की शादी जय प्रकाश नारायण से हुई थी, और एक की राजेंद्र प्रसाद के बेटे से।