जब पटना में हुई जातीय जनगणना!

 

ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1815 से अपने आधिपत्य के प्रदेशों की विस्तृत जानकारी के लिए गज़ेटियर की एक श्रृंखला का प्रकाशन शुरू किया था। गज़ेटियर में संबंधित इलाके का भूगोल, इतिहास, धर्म, संस्कृति, शिक्षा, पेशा, वेतन,मजदूरी, जनस्वास्थ्य , कृषि, सिचाई, प्राकृतिक आपदा, यातायात के साधन, भू-राजस्व, स्थानीय प्रशासन इत्यादि की महत्वपूर्ण जानकारी होती है। इसके पहले अकबर के वक्त में अबुल फज़ल ने आईने अकबरी में इस तरह का काम किया था। फिर अंगरेजों ने ही इसका बकायदा प्रकाशन का काम शुरू किया।

इसी क्रम में 1907 में एक ब्रिटिश आईसीएस अधिकारी ओ’ मैली को पटना के साथ साथ कई और दूसरे जिलों के गज़ेटियर तैयार करने का काम सौंपा गया। पटना जिला के गज़ेटियर तैयार करने के क्रम में उन्होंने यहां रहने वाली जातियों की जनसंख्या के साथ साथ उनके बारे में रोचक जानकारी दी है।

ओ’ मैली ने लिखा है, ‘मुसलमानों में शेख (56,302 ) के बाद जुलाहों( 28,602) की महत्वपूर्ण उपस्थिति है। हिन्दुओं में सबसे अधिक आबादी वाले अहीर या ग्वाला ( 232,908 ), कुर्मी ( 167,522), बाभन (108,263), दुसाध (100,200 ), कहार ( 84,531), कोइरी ( 72,491), राजपूत (63,724),चमार (60,472),और तेली(42,277) हैं। इसके अतिरिक्त आठ ऐसी और जातियां हैं जिनकी आबादी 25,000 से ज्यादा है। इनमें बढई, ब्राह्मण, धानुक, हज्जाम, कन्दुस, मुसहर, पासी और कायस्थ हैं।

उसने लिखा है, पटना जिला में ग्वाले या अहीर सबसे बड़ी जनसंख्या वाले हैं। ये मितव्ययी होते हैं। ये अनाज, भूसी बेचकर,अपने मवेशियों के लिए चारा काटकर और अपरिष्कृत भोजन कर अपना जीवन यापन कर लेते हैं। जबकि घर की महिलाएं दूध, मक्खन और दही बेचती हैं। अहीर आमतौर पर किसान और पशुपालक होते हैं। लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे भी अहीर हैं जो बेहद गरीब हैं और मजदूरी कर गुजर बसर करते हैं। हां, इस जाति में कुछ समृद्ध जमींदार भी हैं।

ओ’ मैली ने ग्वालों को जिले में सबसे ज्यादा झगड़ालू बताया है और लिखा है कि उन्हें लाठी से कुछ ज्यादा ही लगाव है। ओ’ मैली ने ग्वालों के एक रोचक त्योहार का उल्लेख किया हैं। उसने लिखा है, ‘ कार्तिक के सोलहवें दिन, दिवाली के एक दिन बाद वे सोहराई नाम का एक विलक्षण पर्व मनाते हैं। दिवाली की रात दूध में चावल पका कर वे खीर नाम का खाद्य पदार्थ तैयार करते हैं। इस खीर को वे अपने इष्टदेव को समर्पित करते हैं। सभी मवेशियों को भूखा रखा जाता है। अगली सुबह उनके सींगों को लाल रंग से रंग दिया जाता है और उनके शरीरों को भी लाल रंग से पोत दिया जाता है। इन मवेशियों को एक मैदान में छोड़ दिया जाता है जहां एक सुअर के पैरों को बांध कर छोड़ दिया गया होता है। मवेशी उस सुअर को रौंद कर मार डालते हैं।

Arun Singh

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, पुस्तक “पटना खोया हुआ शहर” के लेखक हैं।