‘करो या मरो’ : बगुनाहों का लहु है, रंग लाएगा….

 

मुस्लिम लीग द्वारा भारत छोड़ आंदोलन का विरोध किया गया था। अंग्रेज़ों को लगा के मुसलमान इस आंदोलन से अलग रहेंगे; पर गांधी जी के ‘करो या मरो’ के नारे के बाद देखते ही देखते पुरे भारत में क्रांति की लहर दौड़ पड़ी, इसका असर पटना में भी देखनो को मिला.

मदरसा शमसुल होदा के छात्रों ने पटना कॉलेज के सामने टेलीफ़ुन का तार काट गिराया, अगले दिन मदरसा शमसुल होदा के छात्रों ने ‘वफ़ा बराही’ की नेत्रित्व में महेंद्रु पोस्ट ऑफ़िस को आगे के हवाले कर दिया.

प्रशासन को शक हो गया के मदरसा शमसुल होदा के छात्र भी इस आंदोलन में शामिल हैं, इस लिए हॉस्टल ख़ाली करवा दिया गया, और हॉस्टल में छात्रों की जगह मलेट्री के रहने का इंतेज़ाम किया गया. मलेट्री को रोकने के लिए छात्रों ने महेंद्रु भट्टी से निचली सड़क तक गड्ढे खोद डाले.

इधर पटना युनिवर्सटी में भी छात्रों ने इस काम मे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और युनिवर्सटी की लाईब्रेरी और दिगर ऑफ़िस को आग के हवाले कर दिया। उस समय पटना युनिवर्सटी के अंग्रेज़ स्टाफ़ ने मोहमडण हॉस्टल (अब, इक़बाल हॉस्टल) में आकर वहां रह रहे मुस्लिम छात्रों को ये कह कर भड़काने की कोशिश की के देखो हिन्दु लड़के पटना युनिवर्सटी के लाईब्रेरी में आग लगा रहे हैं। ये सुनते ही हॉस्टल में मौजूद लड़के फ़ौरन अंग्रेज़ स्टाफ़ के साथ हो लिए, मात्र 18 साल के शकूर अहमद जिन्हे सियासी समझ पिता अहमद ग़फ़ूर से विरासत में मिली थी; ने फ़ौरन इस बात का विरोध किया और कहा “ये हिन्दु और मुसलमानो को लड़वाने की साज़िश है, क्युंके अगर इस स्टाफ़ की नियत सच में साफ़ होती तो ये हिन्दु लड़के ना कह कर आराजक तत्व कहते”. शकूर अहमद की बात सारे छात्रों को समझ में आ गई और देखते ही देखते साल छात्र वापस हॉस्टल में चले गए.

अंग्रेज़ स्टाफ़ शकूर अहमद से बहुत नाराज़ हुआ और अगले दिन ही उन्हे पटना यूनिवर्सिटी ये कह कर निकाल दिया के आप हमारे कॉलेज मैं पढ़ने लायक़ नही हैं। इसके बाद शकूर अहमद ने वापस मुड़ कर नही देखा और अपने “भारत छोड़ो आंदोलन” में कूद पड़े.

11 अगस्त को विद्यार्थियों का जुलूस जिसकी एक टोली सचिवालय की ओर बढ़ी, दूसरी टोली बांकीपुर लॉन को रवाना हुई, तो तीसरी टोली पटना सिटी कोर्ट पर राष्ट्रीय झंडे से सुशोभित करने. पुलिस के रोकने के बाद भी लोग कोर्ट के आहते में पहुंच कर झंडे को फहरा दिया. जिस वजह कर 20 लोग गिरफ़्तार कर लिए गए. फिर बचे हुए सारे लोग इंकयलाब का नारा लगाते हुए सचिवालय की ओर बढ़े. भीड़ ने सचिवालय परिसर के अंदर प्रवेश करने और सचिवालय पर कांग्रेस का झंडा फहराने की अनुमति मांगी; उसी बीच एक झंडा सचिवालय के उत्तरी छोर पर फहरा दिया गया. भीड़ लौटने लगी, पर इसी बीच किसी ने अफ़वाह उड़ा दिया के ये कांग्रेस का नही बल्के भीड़ को ठगने के लिए फहराया गया कपड़े का एक समान्य टुकड़ा है, इस संदिग्ध छल से भीड़ उत्तेजित हो कर और ज़ोर ज़ोर से नारा लगाने लगी. पुलिस से टकराव हो गया. भीड़ ने लाठी का जवाब ईंट पत्थर से दिया. फिर पुलिस ने गोली चलाई, काफ़ी लोग शहीद हुए और कई घायल हुए. लोगों को कांधे पर उठा कर पटना मेडिकल कॉलेज ले जाया गया. अंग्रेज़ो ने पुरे हॉस्पिटल को घेर लिया.

11 अगस्त की सचिवालय गोलीकांड में सात लोग शहीद हुए जिसने पुरे बिहार और खास कर पटना जिले में लोगों के गुस्से को चरम पर पहुंचा दिया था. 12 अगस्त की सुबह हज़रों की संख्या में लोग सचिवालय फायरिंग में मारे गए 7 में से 6 शहीदों छात्रों के शवों के साथ मेडिकल कॉलेज से गोलघर घाट के लिए बढ़े. बड़ी संख्या में मुसलमान इस भीड़ के हिस्सा बने. पुरे शहर में मुकम्म्ल हड़ताल रही. गली मुहल्ले से कई छोटे बड़े जुलुस नारा लगाते हुए निकले. और दो बड़े जुलूस का शकल लिया. जिसमे से एक ने गवर्नमेंट प्रेस और गुलज़ारबाग एक्सचेंज ऑफिस पर झंडा पहरा दिया गया. मज़दूरों से हड़ताल करवाता हुआ ये जुलूस पुरे शहर में घूमता रहा. वहीं वद्यार्थियों के नेत्रीत्व में दूसरा गिरोह ‘जेल का फाटक तोड़ दो’ का नारा लगाते हुए बांकीपुर जेल पर धावा बोलने चल दिया. जेल के पास ही कांग्रेस के 102 कैदियों को दो बस में भर कर फुलवारी कैंप जेल ले जाने की तैयारी हो रही थी. भीड़ ने पत्थरबाजी शुरु कर दिया, जिसके परिणामस्वरुप कई पुलिस वाले घायल हुए और एक बस क्षतिग्रस्त हो गया; और उसमे बैठे 24 लोग फ़रार हो गए. जेल के अंदर राजेंद्र प्रासाद, श्रीबाबू, अनुग्रह नारायण और सत्यानारायण जैसे बड़े कांग्रेसी क़ैद थे. उसी शाम कांग्रेस मैदान में सातो शहीदों की याद में जगतनारायण लाल की अध्यक्षता में एक सभा हुई, जिसमे बड़ी संख्या में स्त्री पुरुषों ने हिस्सा लिया. जिसमें सभी संचार साधनों जैसे रेलवे लाईन, टेलिग्राफ एवं टेलीफोन के तार काटने और थाने, कोर्ट जेल एवं अन्य सरकारी कार्यालयों पर नियंत्रण कर वहां रखे सभी दस्तावेज जला देना का प्रास्ताव पारित किया गया.

लोगों को अंग्रेजी गोली का शिकार हुए बच्चों का खून याद दिलाया गया. जिसके बाद जनता में उफ़ान आ गया. सभा के बाद भीड़ जिधर गई, उधर तोड़ फोड़ हुआ. तोड़ फोड़ की घटना देखते देखते पुरे शहर को अपने चपेट में ले लिया. लेटरबॉक्स और लालटैन के खंभे तोड़े जाने लगे, तारे काटे जाने लगे, उसके खंभे गिराये जाने लगे. भीड़ द्वारा गुलज़ारबाग स्टेशन में आग लगा दी गई; जिसके जा़ले का निशान हाल तक गुलज़ारबाग स्टेशन पर मौजूद था. पटना कॉलेज के कार्यालय पर हमले की कोशिश की गई. नयाटोला पोस्टऑफ़िस पर हमला किया गया. कागज़ात जला दिये गए. सड़क जाम कर दिया गया. पीरबहोर थाने पर कब्जे के लिए बड़ी संख्या मे भीड़ जमा हुई. उनमे से दो को गिरफ़्तार कर लिया गया.

13 अगस्त को अधिक्तर सरकारी संस्था पर ताला लगा हुआ था. स्कूल, कॉलेज अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिये गए. अदालत दस दिन के लिए बंद कर दिए गए. फिर कर्फ़्यु लगा दिया गया. पर आम जनता पर कोई ख़ास फ़र्क नही पड़ा वो सरकारी संस्था में तोड़ फोड़ में लगी रही. रिक्शा वाले, टमटम वाले, मज़दूर, क़ुली सबने हड़ताल जारी रखा. देखते ही देखते पुरा पटना शहर जलने लगा. म्यूनिसिपल भवन जल कर राख हो गया. पटना सिटी स्टेशन पर हमला तर पार्सल घर और माल गोदाम लहका दिया गया.

दोपहर ढलते ही दो दिनों बाद पटना आई टामी ब्रिगेड की टीम ने जन-विद्रोह को दबाना शुरु किया. गुलजारबाग के पास पुलिस फ़ायरिंग में रामधनी गोप मारे गए और दर्जनो घायल हुए. बिहटा में उमैर अली और गोपाल साहु पुलिस गोली का शिकार हो कर शहीद हुए. पुलिस ने रात में लोगों की गतिविधी पर नकेल कसने के लिए लालटैन के खंभे के लैंप को काले कपड़े से लपेट दिया; स्कूल और कॉलेज के साथ उसके हॉस्टल पर पुरी तरह से कब्ज़ा कर लिया और संगीन के साये में पटना की जनता को रहने पर विवश कर दिया. पर बच्चों के बहे ख़ून ने अपना रंग दिखा दिया, जिले के फुलवारीशरीफ में 17, विक्रमगंज में 2 व बाढ़-नौबतपुर में एक-एक व्यक्ति सहीत दर्जनो लोग शहीद हुए. फतुहा में दो कनाडियन अफसर मार डाले गए. और प्रांत में ये आग तेज़ी से फैलती गई, और भारत की आज़ादी की खातिर सैंकड़ो लोग शहीद हो गए.

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.