भारत छोड़ो आंदोलन में सुभाष चंद्र बोस का योगदान

 

एक आम समझ ये रही है कि भारत छोड़ो आंदोलन कांग्रेस बल्कि महात्मा गाँधी का आंदोलन था और आज़ाद हिंद फ़ौज सुभाष चंद्र बोस का. असल में ऐसा सोचने का कारण वर्तमान परिस्थितियां हैं जहां कैसा भी देश या समाज हित हो एक राजनितिक दल दूसरे का विरोध ही करते हैं. लेकिन आज़ादी की लड़ाई के समय ऐसा नहीं था. हम ये नहीं समझ पाते कि अलग अलग विचारधाराओं के होते हुए भी सभी राजनितिक दलों का लक्ष्य एक था : “भारत की आज़ादी”.

ये तो आप पहले ही पढ़ चुके हैं कि भारत छोड़ो का नारा देने के साथ ही गाँधी समेत सभी शीर्ष कांग्रेस नेताओं को अंग्रेज़ों ने जेल भेज दिया था. ऐसे में रोचक बात ये है कि अगर कोई नेता नहीं था तो इतने बड़े देशव्यापी आंदोलन का नेतृत्व हुआ कैसे. और इसका जवाब है कि एक नेता था जो जेल में नहीं था और वो थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस. उस समय वे जर्मनी की राजधानी बर्लिन में भारत की आज़ादी के लिए सैन्य सहायता हासिल करने का प्रयास कर रहे थे. लेकिन देश से उनका संबंध आज़ाद हिन्द रेडियो के ज़रिये जारी था. 17 जून, 27 जुलाई और 17 अगस्त 1942 को नेताजी द्वारा रेडियो से देशवासियो को संबोधित किया; जिसमे उन्होने भारतवासीयों को अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े होने की बात कही।

बर्लिन से प्रसारित होने वाले उनके भाषणों को लोग ध्यान से सुनते और बाक़ी देशवासियों तक पहुंचाते थे. 31 अगस्त 1942 को जो भाषण उनका प्रसारित हुआ. उसमें उन्होंने कहा था कि भारत छोड़ो आंदोलन से अंग्रेज़ शासन की नींव हिल गयी है. उन्होंने इस आंदोलन को अहिंसात्मक गुरिल्ला युद्ध की संज्ञा दी थी. इसी भाषण में उन्होंने पिछले रेडियो प्रासारण का हवाला देते हुए देशवासियों को ये आंदोलन कैसे आगे बढ़ाना है इसकी कुंजी भी दी थी। उनके अनुसार गाँधी एवं अन्य नेताओं का जेल में जाना प्रेरणास्त्रोत था. और देशवासियों को उनके सिद्धांतों का पालन कर आंदोलन आगे बढ़ाना था.

उन्होंने अपील की कि लोग टैक्स न दें, सरकारी नौकरियों पर काम की रफ़्तार धीरे हो, कॉलेज में पढ़ाई बाधित की जाये, महिलाएं संदेशवाहक का काम करें, सरकारी नौकरी में लोग नौकरी न छोड़े बल्कि उस नौकरी का इस्तेमाल देश के लिए महत्वपूर्ण जासूसी के लिए करें, घरों में नौकरी करने वाले ख़राब खाना परोसें. रेडियो स्टेशन का आईडिया भी इस भाषण में ही दिया गया था. थानों और सरकारी स्थानों पर प्रदर्शन की अपील भी जारी की गयी. पास से देखने पर पता चलता है कि यही रास्ता भारतीय जनता ने अपनाया और आंदोलन को मज़बूती दी. तो आंदोलन की शुरुआत भले ही गाँधी जी ने की थी पर अंजाम तक पहुँचाया सुभाष बोस ने.

भारत छोड़ो आंदोलन ने नेताजी और गांधीजी को काफ़ी नज़दीक ला दिया था. नेताजी हमेशा गांधीजी से इस तरह के आंदोलन की चाह रखते थे. जैसे ही उन्हे पता चला के गांधीजी  भारत छोड़ो आंदोलन का आग़ाज़ किया है, वो ख़ुद को रोक नही पाए और बर्लिन से ही देश को संबोधित करते हुए लगातार रेडियो प्रसारिण किया; जिसने नेत्रित्वहीण आंदोलन को एक नेत्रित्व दिया.

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.