जब बिहार आंदोलन से जुड़े लोगों ने वॉयसराय लॉर्ड हार्डिंग की मूर्ति पटना के पार्क में लगवाई….

 

22 मार्च को हर साल बिहार दिवस मनाया जाता है, बिहार के अलग राज्य के रूप में स्थापित होने की ख़ुशी में। बिहार राज्य की स्थापना साल 1912 में हुई थी।

यूँ तो सबसे पहले अगल बिहार राज्य की आवाज़ उठाई मुंगेर से निकलने वाले उर्दु अख़बार ‘मुर्ग़ ए सुलेमान’ ने। इस अख़बार ने ही सबसे पहले “बिहार बिहारियों के लिए” का नारा दिया था। ये मांग अख़बार ने उस समय की थी जब आम तौर पर लोग इस बारे में सोंचते भी नही थे। ये मांग 1870 के बाद की गई थी।

इसके बाद ये तहरीक का रूप लेती गई। क़ासिद पत्रिका ने 1877 में लिखा के बिहार और बंगाल का साथ होना वैसा ही है जैसा फ़्रांस और इंग्लैंड का साथ रहना. इससे पहले नादिर उल अख़बार नामक हफ़्तावर अख़बार ने 1874 में बंगाल सूबे में बिहारियों पर हो रहे भेदभाव पर सवाल उठाया था।फिर इस तहरीक में कूदे अंग्रेज़ी बोलने वाले कायस्थ और मुसलमान; सालों तक संघर्ष चलता रहा।

1905 में बंगाल दो हिस्से में बाँट दिया गया; तब उसका विरोध हुआ; पर बिहार के नेताओं ने उसका समर्थन किया, पर आख़िर में बंगाल के बँटवारे कि नीति को अंग्रेज़ों ने दबाओ में वापस ले लिया, पर बिहार के नेता लगातार अलग बिहार के लिए संघर्ष करते रहे।

1908 में पहला बिहार प्रांतीय सम्मेलन अली इमाम अध्यक्षता में हुआ, 1911 के आख़िर में दिल्ली दरबार हुआ, यहाँ अली इमाम दूरअंदेशी और डॉ सच्चिदानंद सिन्हा की मेहनत के वजह कर अलग बिहार राज्य के वजूद का रास्ता साफ़ हो गया।

अंग्रेज़ों ने ना सिर्फ़ अलग बिहार राज्य की माँग को स्वीकारा बल्कि; दिल्ली को वापस भारत की राजधानी बनाने का भी फ़ैसला किया, और इसके लिए बनी कमेटी में अली इमाम को उपाध्यक्ष का ओहदा मिला। और आख़िर 22 मार्च 1912 को बिहार भी अलग राज्य के रूप में स्थापित हुआ। पटना को राजधानी घोषित किया गया।

यहाँ बिहार की स्थापना में अली इमाम और सच्चिदानंद सिन्हा के इलावा जिस शख़्स का सबसे बड़ा योगदान था; वो थे उस समय भारत के वॉयसराय लॉर्ड हार्डिंग जिन्होंने निजी तौर पर बिहार को अलग राज्य बनाने में विशेष दिलचस्पी ली।

इस बात को बिहार के नेता भली भाती जानते थे; इसलिए उन्होंने वॉयसराय लॉर्ड हार्डिंग के नाम पर एक स्मारक की स्थापना करने को ठाना। और आख़िरकार बिहार राज्य के स्थापना में लॉर्ड हार्डिंग के योगदान को देखते हुवे एक विशाल पार्क की स्थापना की गई, और उसका नाम लॉर्ड हार्डिंग के नाम पर हार्डिंग पार्क रखा गया, इस पार्क का निर्माण करवाने में बिहार राज्य के स्थापना हेतु संघर्ष कर रहे आंदोलनकारी लोगों का सबसे बड़ा हाथ था; जिन्होंने इस काम के लिए सूबे के जागीरदारों को भी अपने साथ जोड़ा था।

इस काम के लिए फ़ंड जमा करने हेतु पटना कॉलेज हाल, बांकीपुर में 28 सितम्बर 1914 को एक मीटिंग रखी गई, इस प्रोग्राम के कन्वेनर अली इमाम थे। इसमें बिहार आंदोलन के आंदोलनकारी, सभी ज़िलों के प्रतिनिधि के इलावा बड़ी संख्या में जागीरदार शरीक हुवे थे। दरभंगा महराज, टेकारी महाराज, खगड़ा के नवाब, जस्टिस शरफ़ुद्दीन, कुमार शिवनंदन प्रसाद, कालिकानंद सिंह, नवाब नसीरउद्दीन अहमद, नवाब इमदाद इमाम, पृथ्वीचंद राय से ले कर सर सुल्तान अहमद तक मौजूद थे।

अली इमाम ने दरभंगा के महाराजा को अध्यक्षता का प्रस्ताव देते हुए, सभा और आंदोलन के काम का उल्लेख किया, इस कार्यक्रम की अध्यक्षता अली इमाम के कहने पर दरभंगा महराज ने की। जिसके बाद राय बहादुर कृष्णसहाय ने बालासोर, डुमरांव, अमावां, हथवा के महाराजा और अन्य लोगों से टेलीग्राम पढ़े, जिन्होंने अपनी अनुपस्थिति के लिए खेद व्यक्त किया था और आंदोलन के साथ अपनी गहरी सहानुभूति भी की पेश की थी।

इसके साथ मीटिंग का आग़ाज़ होता है, लोग अपनी राय रखते हैं, सबसे पहले कनिका के राजा ने एक प्रस्ताव रखा कि पटना में एक स्मारक की स्थापना की जाए, जिसमें बिहार की स्थापना करने वाले महामहिम व्यक्तित्व का आभार प्रकट करने के लिए स्मारक के रूप में एक सुंदर पार्क बनाया जाए और वहाँ महामहिम की प्रतिमाओं को भी लगाया जाए। इस प्रस्ताव पर कुमार शिवनंदन प्रसाद, खगड़ा के नवाब मोईनउद्दीन मिर्ज़ा, मुहम्मद फ़ख़रुद्दीन, दरभंगा के बाबू बिंदेश्वरी प्रसाद और राय बहादुर पूर्णेंदु नारायण सिन्हा जैसे लोगों ने अपनी बात रखी, और आख़िर में इस प्रस्ताव को उत्साहपूर्वक पारित किया गया।

इस मौक़े पर टिकारी के महाराज ने प्रस्ताव रखा कि उस पार्क में प्रांत के पहले गवर्नर सर चार्ल्स बेली के सम्मान में उनके नाम पर एक ग़ैर-राजनीतिक और गैर-सांप्रदायिक क्लब की स्थापना की जाए, जिसमें हिंदू और मुसलमानो की भावनाओं का ख़्याल रखते हुवे आपत्तिजनक भोजन पेश करने की अनुमति नहीं दी जाए। इस प्रस्ताव का ब्रजकिशोर प्रसाद और खगड़ा के नवाब ने समर्थन किया।

वहीं मधुसूदन दास ने प्रस्ताव रखा कि एक कार्यकारी समिति का गठन किया जाए, जो स्थानीय सरकार से पार्क के लिए उपयुक्त जगह पाने के लिए संपर्क करे, और नवाब नसीरुद्दीन ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया।

बाबू शिवशंकर सहाय ने प्रस्ताव रखा कि गवर्नर सर चार्ल्स बेली से इस पूरे प्रोग्राम का संरक्षक बनने का अनुरोध किया जाए। बाबू नन्दकिशोर लाल ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। वहीं मज़हरुल हक़ सहीत अन्य लोग कहना था कि जब तक योजना पर ठोस काम न हो जाए, तब तक संरक्षक के लिए अनुरोध नही किया जाए।

विभिन्न मुद्दों पर गहन चर्चा के बाद जस्टिस शरफ़ुद्दीन ने पदाधिकारियों और स्मारक समिति के सदस्यों के चुनाव की प्रकिया शुरू की। जिसमें दरभंगा के महाराजा को अध्यक्ष; बालासोर, डुमरांव, अमावां, गिधौर, छोटा नागपुर, कनिका के राजा और बेतिया व हथुवा के महारानी को उपाध्यक्ष बनाया गया। टिकारी के महाराजा को सचीव और राय बहादुर कृष्ण सहाय, सच्चिदानंद सिन्हा, मधुसूदन दास, बाबू रघुनंदन प्रसाद सिन्हा और सैयद मोहम्मद इस्माइल को संयुक्त सचिव मनोनीत किया गया। इस तरह हार्डिंग मिमोरियल समिति स्थापना होती है।

सच्चिदानंद सिन्हा और राय बहादुर कृष्ण सहाय ने धन के लिए अपील करते हुवे कहा कि उन्हें विश्वास है कि इस काम के लिए आवश्यक राशि कुछ ही समय में पूरी हो जाएगी। जिसके बाद दरभंगा महाराजा ने 40,000, टिकारी महाराज ने 25,000, डुमरांव के राय बहादुर हरिहर प्रसाद सिन्हा ने 15,000, पीसी लाल ने 15,000, गिधौर के महाराजा ने 10000, बाबू बिंदेश्वर प्रसाद सिन्हा ने 5,000, बाबू हरिनाथ सिन्हा 2,000, नवाब मोहिउद्दीन मिर्जा और सच्चिदानंद सिन्हा ने 1,000 रुपय दिए, वहीं सैयद अली इमाम ने 1,500 रुपय दिए। इसके इलावा और भी कई लोगों सहयोग राशि दी।

इसके बाद बाबू द्वारकानाथ ने प्रस्ताव रखा कि यदि इस काम लिए जमा की गई राशि में कुछ पैसा बच जाता है तो उसे समिति के इजाज़त से अन्य उद्देश में भी उपयोग किया जाए। ख़ान बहादुर महबूब हसन और बिशन प्रसाद ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया।

दरभंगा महराज रामेश्वर सिंह के अध्यक्षता भाषण के बाद सभा का समापन होता है, और इसके बाद पार्क रूपी स्मारक के लिए ज़ोर शोर से काम शुरू होता है, बांकीपुर स्टेशन और सचीवालय के बीच एक 22 एकड़ के प्लॉट में पार्क बनाने का काम शुरू होता है। 22 एकड़ भूभाग में फैले इस पार्क को बिहार और ओडिशा के उस समय के गवर्नर सर एडवर्ड गेट ने 31 जनवरी 1916 में जनता के लिए खोला था।

सूबे के उस समय के गवर्नर ने लंदन में प्रख्यात ब्रिटिश मूर्तिकार हर्बर्ट हैम्प्टन द्वारा तैयार लॉर्ड हार्डिंग की पांच टन वज़नी कांस्य की प्रतिमा का अनावरण भी किया था।

आज़ादी के बाद 22 एकड़ में फैले इस पार्क को उपनिवेशवाद की बर्बरता की निशानी के रूप में देखा गया। और आज़ादी के कई साल बाद 60 के दशक के आख़िर में विरोध प्रदर्शनों के कारण सबसे पहले पार्क से प्रतिमा हटा कर पटना संग्रहालय में रख दिया गया। फिर काफ़ी साल बाद इस पार्क का नाम 1857 के नायक बाबू कुंवर सिंह के नाम पर कर दिया गया। और वहाँ आर-ब्लॉक से उठा कर लाई गई कुंवर सिंह की प्रतिमा स्थापित की गई।

वैसे लॉर्ड हार्डिंग की पांच टन वज़नी कांस्य की प्रतिमा को 90 के दशक में संग्रहालय के बग़ीचे के एक कोने में एक प्लेटफ़ॉर्म पर फिर से लगा दिया गया। प्रतिमा के पास लगी कतबा में लॉर्ड हार्डिंग के बारे में संक्षिप्त जानकारी भी दी गई है, जिसमें उन्हें बिहार का निर्माता बताया गया है।

वैसे ज्ञात हो के 1 दिसंबर 1913 और 3 फ़रवरी 1916 को भारत के लॉर्ड हार्डिंग पटना में थे।

Photo : Planet Patna Patter

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.