मजलिस-ए-अहरार इस्लाम, एक राष्ट्रवादी मुस्लिम पार्टी जिसकी तारीफ़ सुभाष चंद्रा बोस ने की
पिछले दिनो गया के एक ख़ानक़ाह के नादिर मक़तूतात को देख रहा था, उसी दौरान एक सफ़ेद काग़ज़ दिखा, जिस पर मोहर लगा हुआ […]
पिछले दिनो गया के एक ख़ानक़ाह के नादिर मक़तूतात को देख रहा था, उसी दौरान एक सफ़ेद काग़ज़ दिखा, जिस पर मोहर लगा हुआ […]
प्रोफ़ेसर क़ासिम अहसन वारसी की पैदाइश बिहार के अरवल ज़िला के इमामगंज में 10 नवम्बर 1933 को हुआ था। वालिद का नाम शाह मुहम्मद ज़की […]
सैयद शाह रशीद उर रहमान का जन्म अप्रैल 1926 को बिहार के जहानाबाद ज़िला के काको में हुआ था, वालिद का नाम सैयद अता उर […]
आज़ाद हिंद फ़ौज के संस्थापकों में से एक कर्नल एहसान क़ादिर आज़ाद हिंद रेडियो के डायरेक्टर थे। कर्नल इनयतुल्लाह हसन ने आज़ाद हिंद रेडियो […]
ग़ुबार भट्टी का असल नाम मुश्ताक़ अहमद था। जिनकी पैदाइश जुलाई 1920 को बाराबंकी में हुई थी। उनके वालिद का नाम मौलाना निसार नूरउल्लाह भट्टी […]
डॉक्टर सैयद नज़रे इमाम का जन्म 1924 को दरभंगा के मलिकपुर में हुआ था। आपके वालिद का नाम सैयद अहमद हुसैन था, जो सिवान के […]
सैयद हसन इमाम का जन्म 31 अगस्त, 1871 को पटना ज़िला के नेउरा गांव में हुआ। आपके वालिद का नाम सैय्यद इमदाद इमाम था और […]
शाह मोहम्मद उमैर का जन्म 1903 में बिहार के अरवल ज़िले में हुआ था। पिता का नाम अशफाक शाह अश्फ़ाक हुसैन था, जो इलाक़े के […]
19 अप्रैल 1922 को ख़लील अहमद अंसारी ने जब इस दुनिया में आँख खोला तब ख़िलाफ़त और असहयोग आंदोलन का असर पूरे मुल्क में […]
नज़रबंदी के दौरान 1917 में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद नें रांची शहर में एक तालीमी एदारा क़ायम किया था, जिसे आज दुनिया मदरसा इस्लामिया रांची […]
एक बार क़ुतुबमीनार देखने गया; वहाँ के गाइड ने बताया के ये ग़ुलाम वंश के पहले बादशाह क़ुतुबउद्दिन ऐबक के नाम पर है, पर दर […]
पटना का तिब्बी कॉलेज भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे पहला सरकारी यूनानी मेडिकल कॉलेज है. 29 जुलाई 1926 को गवर्मेंट तिब्बी कॉलेज एंड हॉस्पिटल की स्थापना […]
अहमद हुसैन की पैदाइश 1886 को पटना ज़िला के नेवरा में हुई थी। शुरुआती तालीम घर पर हासिल की। अपने वालिद मौलवी अमजद हुसैन से […]
जब बिहार मे 1857 की क्रांति की बात होती है तो सिर्फ़ ‘बाबू कुंवर सिंह’ का नाम लिया जाता है.. उन्हे याद किया जाता है… […]
1926 के दौर में जब जामिया मिल्लिया इस्लामिया बंद होने के हालात पर पहुँच गई तो ज़ाकिर हुसैन ने कहा “मैं और मेरे कुछ साथी जामिया की ख़िदमत के लिए अपनी ज़िन्दगी वक़्फ़ करने के लिए तैयार हैं. हमारे आने तक जामिया को बंद न होने दिया जाए.” जबकि उस वक़्त वो जर्मनी में पीएचडी कर रहे थे।
नवाब बहादुर सैयद विलायत अली ख़ान का जन्म 23 सितम्बर 1818 को पटना के एक बड़े बैंकर ख़ानदान में हुआ था, वालिद का नाम […]
पर उनकी तरबियत डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन ने की थी, जिनके पास वतन से दूर रह कई बड़े काम अंजाम देने के मौक़े थे, पर उन्होंने जर्मनी से पढ़ाई मुकम्मल करने के बाद बंद होने की कागार पर पहुँच चुके जामिया मिलिया इस्लामिया को सम्भालने भारत आ गए, वैसे सैयद हसन भी अमेरिका में रहते हुवे कई भारतीय छात्रों की पढ़ाई में मदद करते रहे और 1965 वापस भारत आ गए।
एक आम समझ ये रही है कि भारत छोड़ो आंदोलन कांग्रेस बल्कि महात्मा गाँधी का आंदोलन था और आज़ाद हिंद फ़ौज सुभाष चंद्र बोस […]
एक ज़माना था के जब भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और बर्मा सब एक-दूसरे से जुड़े थे; यानी एक मुल्क थे। और आज एक दूसरे से अलग- […]
प्रथम विश्व युद्ध में दौरान 1 दिसम्बर 1915 को राजा महेन्द्र प्रताप की अध्यक्षता में प्रवासी भारतीय सरकार की स्थापना काबुल में की जाती है। […]
हाल के दिनो में पटना में एक एलिवेटेड रोड के लिए ऐतिहासिक ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी के कर्ज़न रीडिंग रूम को तोड़ने के प्रस्ताव […]
पुर्व केंद्रीय मंत्री डॉ शकील अहमद अपने पिता बिहार विधानसभा के पुर्व उपसभापति शकूर अहमद के साथ कहीं जा रहे थे। उन्हें रास्ते में एक […]
1934 से 1937 तक बिहार के शिक्षा मंत्री रहे सैयद अब्दुल अज़ीज़ पटना में अलग अलग तरह के सामाजिक कार्य करने के लिए बड़ेमशहूर थे। […]
बिहार शरीफ़ के सबसे पुराने मदरसे मदरसा अज़ीज़िया को पूरी तरह जला कर ख़ाक कर दिया जाना इस लिए भी बहुत अफ़सोसनाक है, क्यूँकि […]
आधुनिक भारत ही की भांति आधुनिक बिहार के इतिहास पर भी अगर गौर करें तो कहना पड़ेगा कि आधुनिकता और राष्ट्रवाद की प्रगति के […]
सरज़मीन-ए-हिन्द पे अक़वाम-ए-आलम के फिराक़ क़ाफ़िले आते गये हिन्दोस्तां बनता गया फिराक़ गोरखपुरी अपने इस शेर में हिंदुस्तान की हज़ारों बरस पुरानी गंगा जमुनी तहज़ीब […]
19वीं शताब्दी का भारत नवजागरण का है। इस नवजागरण में विदेशी शिक्षा का प्रमुख हाथ था। इसलिए उन दिनों विलायत जाने वालों को लेकर […]
Shubhneet Kaushik जनवरी 1941 में सुभाष चंद्र बोस ब्रिटिश सरकार की आँखों में धूल झोंककर नज़रबंदी से फ़रार हुए। अंग्रेज़ी राज की नज़रों से बचाकर […]
रौशनी जिसकी किसी और के काम आ जाए! एक दिया ऐसा भी रस्ते में जला कर रखना! (अतश अज़ीमाबादी) ख़्वाजा सैयद रियाज़ उद दीन अतश […]